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'हां, मगधा ! यहां बैठ।'
किन्तु आश्चर्य से अभिभूत मगधा ने पूछा---'महादेवी ! आप और इस समय....?'
'तू पहले यहां बैठ । मुझे इस खंड में आश्रय दे जिससे कि मुझे कोई जान न पाए।' _ 'यह सारा भवन आपका है। आप स्वयं आश्रयदाता हैं। आप आश्रय की याचना न करें।
'मगधा ! पहले तू मुझे निर्भय स्थान में ले चल, फिर मैं तुझे सारा वृत्तान्त बताऊंगी।'
'चलें, मेरे शयनकक्ष के पास वाला कक्ष अत्यन्त निरापद है । आप वहां निर्भय होकर रहें।'
दोनों खंड से बाहर निकलीं।
सुंदरी बाहर ही खड़ी थी। मगधा ने कहा- 'सुरा के दो पात्र और मिष्टान्न मेरे शयनकक्ष में रख आ।'
'जी', कहकर सुंदरी चली गई। ___कनकावती को लेकर मगधा अपने शयनकक्ष में गई। उसके भीतर एक दूसरा खंड और था। वह मगधा का क्रीड़ागृह था। मगधा ने देवी को वह खंड दिखाया और एक वीरासन पर बैठने के लिए कहा।
सुंदरी सुरापात्र तथा मिष्टान्न लेकर आ गई थी। दोनों से सुरापान किया, मिष्टान्न लिया। सुंदरी चली गई।
कनकावती ने मगधा से कहा-'भारी विपत्ति के कारण मैं यहां आयी हैं। अपने भवन में मुझे शरण देनी है...' कहते-कहते महारानी ने सारा पूर्व वृत्तान्त कह सुनाया। कनकावती ने कहा-'मगधा ! मुझे ढूढ़ने के लिए राजपुरुष चारों ओर भेजे जाएंगे।'
'आप निश्चित रहें । मगधा अपनी प्रिय सखी की सुरक्षा करना जानती है। अब आप भीतर के खंड में जाएं और आराम करें। जब आप जागेंगी तो आपको उत्तम वस्त्र तैयार मिलेंगे।'
"प्रिय मगधा ! मैं तेरा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगी।' कहते हुए कनकावती ने अपना एक हाथ मगधा के कंधे पर रखा।
तत्पश्चात् मगधा रानी कनकावती को अपने केलिगृह में ले गई । कनकावती बोली-'जा, अब तू भी आराम कर''मैंने आज तुझे बहुत परेशान किया है। परन्तु लाचार हूं, क्या करूं? मनुष्य को अनेक बार लाचारी से गुजरना पड़ता है।'
रानी को आश्वासन दे मगधा अपने शयनकक्ष में आयी और शय्या पर सो
१२० महाबल मलयासुन्दरी
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