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२३. मध्यरात्रि के पश्चात्
हमने देखा कि एक ही रात्रि में कितने बनाव बन जाते हैं। कितनी अनहोनी घटनाएं घटित हो जाती हैं।
संसार वास्तव में ही इन्द्रजाल के समान है। मनुष्य आशाओं के अंबार खड़ा करता है और कर्म के एक धक्के से वह अंबार बिखरकर नष्ट हो जाता है । कर्म मनुष्य की आशाओं को पीस डालता है।
ज्ञानी पुरुष इसीलिए कहते हैं—संयोग में फूलो मत, गर्व मत करो।
शोक को पचाना सरल है, परन्तु हर्ष को हजम कर पाना कठिन है। जिसके हृदय में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित हो जाती है, वही व्यक्ति हर्ष को पचा सकता है। इसीलिए ज्ञानी पुरुष शोक को अमृत और हर्ष को विष मानते हैं ।
रानी कनकावती साधारण स्त्री नहीं थी। वह चन्द्रावती के नृप की रानी थी 'वह असीम सुख में पल रही थी 'दास-दासियां प्रतिपल पलकें बिछाए खड़ी रहती थीं। 'हां, एकमात्र कमी यह थी कि वह निःसंतान थी, किन्तु सौतेली रानी की संतान कहां परायी होती है ! जिसको वह अपना स्वामी मानती थी, उसी की तो वह संतान थी।
परन्तु यह सत्य उसके प्राणों का स्पर्श नहीं कर पाया था.''जहां सत्य का स्पर्श नहीं होता वहां अंधकार ही अंधकार छाया रहता है। ईर्ष्या, वैर और असंतोष घोर अंधकार है। रानी कनकावती इसी में घुल रही थी। उसने उपाय किया'"उपाय कारगर भी हुआ."किन्तु उपाय की सफलता को वह पचा नहीं सकी। ___ एक चोर की भांति लक्ष्मीपुंज हार और आभरणों को लेकर उसे महलों से भागना पड़ा। फिर भी उसका विवेक नहीं जागा । सदा साथ रहने वाली सोमा को उसने बीच में छोड़ दिया । उसे कुछ भी नहीं दिया।
आज जिसके भवन में वह निवास कर रही है, वह राजरानी के लिए उपयुक्त स्थान नहीं है। 'अरे ! राजरानी की बात तो दूर रही, एक कुलवधू के लिए भी वह स्थान रहने योग्य नहीं है वह मगधा वैश्या का भवन है। रानी
महाबल मलयासुन्दरी ११७
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