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निमित्तज्ञ के ये वचन सुनकर सैनिक और अन्य लोग चिता को बुझाने में लग गए।
महाबल ने राजा की ओर देखकर कहा-'हे राजन् ! हे प्रजा-पालक ! आप व्याकुल न होते हुए अपने निश्चय को बदलें। मैं अपने निमित्त ज्ञान के आधार पर आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि आपकी प्रिय कन्या किसी-नकिसी स्थान पर जीवित है।'
निमित्तज्ञ के वचनों से कुछ शान्त होते हुए राजा ने कहा-'हे निमित्तज्ञ ! आप मुझे मिथ्या विश्वास दिला रहे हैं, ऐसा प्रतीत होता है। मेरे पुण्य पूरे हो गए हैं, चुक गए हैं. ''अब मैं कभी अपनी लाडली बेटी को नहीं देख पाऊंगा।' ___'महाराज ! मैं आपको झूठा विश्वास क्यों दिलाऊंगा? मेरा इसमें स्वार्थ ही क्या है?' ___'निमित्तज्ञ ! मेरी कन्या ऐसे अंधकूप में गिरी है कि उसके जीवित रहने की तनिक भी आशा नहीं है।'
'महाराज ! आप मेरे वचनों पर विश्वास करें। आप अपने राजप्रासाद में पधारें । वहां मैं आपको पूरा समाधान दूंगा।'
महामंत्री ने निमित्तज्ञ के कथन का समर्थन किया। लोगों ने निमित्तज्ञ का जयजयकार किया। राजा वीरधवल और रानी चंपकमाला मंच से नीचे उतरे। चिता पूरी तरह बुझ चुकी थी। लोगों ने महाराज का जयनाद किया। महामंत्री ने एक रथ को तैयार करने की आज्ञा दी।
११६ महाबल मलयासुन्दरी
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