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________________ 'मुझे याद है. और परसों मैं तेरे से विधियुक्त विवाह कर अपनी बना लूंगा।' कहते हुए महाबल ने प्रियतमा के मस्तक पर हाथ रखा। । उसके बाद मलया को मंदिर में अकेली छोड़कर महाबल नगरी की ओर चल पड़ा। चंद्रावती नगरी गोला नदी के तट पर अवस्थित थी। महाबल को पता ही नहीं था कि नगर में जाने का मार्ग कौन-सा है, पर वह नगरी की अट्टालिकाओं को देखकर उसी दिशा में चल पड़ा। एक प्रहर दिन बीत चुका था। नगरी निकट थी। महाबल ने नदी के किनारे का पथ छोड़कर गाड़ी का रास्ता लिया, क्योंकि वह नगरी की ओर ही जा रहा था। थोड़ी दूर जाते ही उसने आश्चर्य के साथ देखा कि एक विशाल वट-वृक्ष के नीचे हाथी खड़ा है। उसके आस-पास अनेक पुरुष खड़े थे। कुछ व्यक्ति हाथी की लीद पानी में घोल रहे थे। महाबल ने सोचा-लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं ? क्या हाथी बीमार है ? महाबल उन लोगों के पास जाकर विनयपूर्वक बोला---'आप सब ऐसा क्यों कर रहे हैं ? हाथी बीमार हो ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है।' एक राजपुरुष ने आगे आकर कहा-'भद्रपुरुष ! हमारे महाराजा का यह प्रधान हाथी है। कल लड्डुओं के साथ इसके पेट में अनेक स्वर्ण-मुद्राएं चली गई हैं।' 'लड्डुओं के साथ ?' महाबल ने आश्चर्य के साथ प्रश्न किया। 'हां, श्रीमन् ! बाहर से आए हुए राजकुमारों ने ऐसे ही कुतूहलवश हाथी के लिए तैयार होने वाले लड्डुओं में स्वर्ण-मुद्राएं डाल दी थीं। महावत को इसका पता ही नहीं चला और उसने सारे लड्डू इसको खिला दिए । उदर में धातु के प्रविष्ट होने के कारण हाथी को भयंकर वेदना हुई । तत्काल हस्ति-चिकित्सक को बुलाया गया। उसने उदरस्थ धातु की बात कही और उस धातु को निकालने के लिए उसने औषधि दी। इसलिए हम हाथी को लेकर गांव के बाहर आए हैं और उसकी लीद से स्वर्ण-मुद्राएं निकाल रहे हैं।' 'क्या यह हाथी महाराजाधिराज वीरधवल का है ?' 'हां, वे तो केवल एक-दो प्रहर के ही अतिथि हैं किन्तु उनकी अंतिम इच्छा है कि इस हाथी के प्राणों को येन-केन-प्रकारेण बचाया जाए।' क्या महाराज बीमार हैं ?' महाबल ने दूसरा प्रश्न किया। 'अरे भाई ! तुम तो कोई परदेशी लगते हो। हमारे महाराजा अपने अन्याय का प्रायश्चित्त करने के लिए आज मध्याह्न में जलती हुई चिता में जल जाने वाले हैं। साथ में रानी चंपकमाला भी जल मरने वाली हैं। आप कहां से आए हैं ?' महाबल मलयासुन्दरी ११३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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