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को अर्पित करना।
'आप हार की खोज करने गए हैं या अन्यत्र, यह आपकी मातुश्री को कैसे ज्ञात होगा?'
'तू जो कह रही है, वह उचित है । तत्काल नगर में जाता हूं और महाराजा वीरधवल की स्थिति की जांच करता हूं। फिर मैं कुछ लिखकर भेज दूंगा।'
'क्या मुझे आपके साथ रहना है ?'
'नहीं, तू नगरी में चली जाना.'और संध्या के समय मगधा वेश्या के घर जाकर रहना है। वहां रानी कनकावती है। वहां तुझें अपने बुद्धिबल से हार प्राप्त करने का प्रयत्न करना है।' __ 'लक्ष्मीपुंज हार यदि मेरी अपरमाता कनकावती के पास होगा तो मैं उसे अवश्य प्राप्त कर लूंगी, किन्तु मुझे मेरा वेश-परिवर्तन करना पड़ेगा परन्तु हमारे पास कुछ भी तो नहीं है।' मलया ने कहा।
'प्रिये ! पहले हम इस मंदिर में देखते हैं कि यहां कोई रहता है या नहीं।' यह कहकर महाबल उठा और मलया को वहीं बिठाए रखकर अकेला ही सारे मंदिर में घूम आया। __उसने कहा-'मलया ! यहां कोई नहीं रहता। यह निर्जन एकान्त है। किन्तु नगर में जाकर मैं तेरे लिए वस्त्र और धन की व्यवस्था करता हूं। और उन्हें यहीं भिजवाता हूं। तू डरना मत । तेरे इस पुरुषरूप का परिवर्तन कोई नहीं कर सकता।'
'किन्तु आप धन कहां से भेज पाएंगे ?' महाबल ने हंसते हुए अपने गले में पहनी हुई रत्नमाला मलया को दिखायी।
मलया ने भी हंसते हुए कहा---'मैं सारे आभूषण महलों में ही छोड़ आयी हूं। किन्तु मेरी अंगुली में एक रत्नजटित अंगूठी अवश्य रह गई है । वह राज्यमुद्रा से अंकित है।' _ 'तुझं यह मुद्रिका देनी होगी, क्योंकि यदि कोई इस मुद्रिका को देख लेगा तो वह तुझे चोर समझकर पीड़ित करेगा।'
मलया ने तत्काल अंगूठी निकालकर महाबल को दे दी। महाबल ने उसे अपनी कमर में बांधते हुए कहा--'थोड़े समय में ही मैं वस्त्र और धन भेज रहा हूं. साथ में कुछ मिष्टान्न भी भेजूंगा--निश्चिन्त रूप से भोजन कर, वस्त्र बदलकर नगरी में चले जाना । आज की रात्रि मगधा के यहां बिताना और कल संध्या के समय यहां आकर मुझसे मिलना ।'
'कल संध्या को?' 'हां, मुझे जो कार्य करना है वह श्रम-साध्य और समय-साध्य है।' परसों तो मेरे स्वयंवर की तिथि है ?'
११२ महाबल मलयासुन्दरी
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