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२२. चिता ठंडी हो गई
पुरुषरूप में मलयासुन्दरी और महाबल --- दोनों गोला नदी के तट पर पहुंचे। वहां प्रातः कर्म से निवृत्त हो बैठ गए ।
मलयासुन्दरी कल से भूखी थी । महाबल इधर-उधर गया । वृक्षों के फल तोड़कर मलया को दिए। दोनों ने फल खाकर जलपान किया ।
महाबल ने मलया की ओर देखकर कहा - 'प्रिये ! मैं यहां के स्थानों से अपरिचित हूं । तू यदि जानती हो तो हम ऐसे स्थान पर जाएं जहां कुछ समय तक विश्राम कर सकें ।'
मलया बोली --- ' प्राणेश ! मैं भी इस ओर कल ही आयी हूं। हम नदी के किनारे-किनारे चलते हैं, कहीं-न-कहीं विश्राम योग्य स्थान मिलेगा ही ।'
दोनों नदी के किनारे चलने लगे। थोड़ी दूर जाकर मलया ने कहा- 'मेरा यह पुरुषरूप में परिवर्तन किसी की कल्पना में भी नहीं आ सकता ।'
महाबल ने मुसकराकर कहा - 'तेरे रूप को देखकर मुझे एक भय लग रहा है । हां, यह तिलक भी मेरे सिवाय कोई मिटा नहीं सकेगा, तब तक तुझे कोई भय नहीं है । भय की आशंका भी नहीं करनी चाहिए ।'
'मेरे चेहरे पर कोई क्रूरता"
'नहीं, प्रिये ! सुन्दरता उभर आयी है । सुन्दरता क्रूरता से भी अधिक खतरनाक होती है । मुझे यह भय सता रहा है कि तू नगरी में जाएगी और पुरस्त्रियां तेरे रूप को देखकर
"
बीच में ही मलया ने कहा - ' बस-बस रहने दो। मैं नगरी में क्यों जाऊंगी ?"
मलया ! हमारे पर एक जबरदस्त दायित्व आ पड़ा है। यदि तू अपने मूलरूप में पिता के समक्ष प्रकट हो तो सभी तुझे मलय का प्रेत मान बैठेंगे ।'
'तब हमें अब क्या करना चाहिए ?' यह प्रश्न करती हुई मलया ने एक ओर दृष्टि डालते हुए कहा - 'सामने एक मंदिर है मुझे लगता है कि वह मंदिर भट्टारिका देवी का होना चाहिए ।'
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महाबल मलयासुन्दरी
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