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________________ और उस समय आम्रवृक्ष के पास पुरुषवेश में मलया बैठी थी। महाबल आहट की दिशा में कान लगाए बैठा था। थोड़े समय पश्चात् एक आकृति दिखाई दी। महाबल ने तत्काल जोर से पुकारा--'कौन है ? आने वाली और कोई नहीं, रानी कनकावती की दासी सोमा थी। वह घबरा गयी। उसने सोचा-राजा के सैनिकों ने मुझे पुकारा होगा। वह करुण स्वर में बोली-'मैं एक अत्यन्त दु:खी नारी हूं।' ___ महाबल और मलया-दोनों उस ओर गए । सोमा कांपती हुई वहीं खड़ी रह गयी थी.''उसके दौड़ने का बल और साहस चुक गया था। अभी प्रातःकाल प्रकट होने में विलम्ब था। अन्धकार फैला हुआ था। भय से कांपती हुई सोमा की ओर देखकर महाबल ने कहा- 'बहन ! तू क्यों डर रही है ? हम परदेशी क्षत्रिय हैं। इस अटवी में मार्ग भूल गए हैं, इसलिए इधर-उधर भटक रहे हैं। यह स्थल कौन-सा है ? क्या आसपास में कोई गांव या नगर है ?' सोमा बोली-'क्षत्रियकुमारो ! मैंने तो यह समझा था कि आप दोनों राजा के सैनिक हैं और इसीलिए मैं भयभीत हो रही हूं। यहीं पास में चन्द्रावती नाम का सुन्दर नगर है। उस नगरी के स्वामी महाराज वीरधवल मेरे पर और मेरी स्वामिनी कनकावती पर अत्यन्त कुपित हो गए हैं। यह स्थल गोला नदी का किनारा है।' यह सुनकर महाबल बहुत सन्तुष्ट हुआ। उसने सोचा-'व्यन्तरी देवी ने मुझे यहां छोड़कर मेरा उपकार ही किया है। मुझे जहां पहुंचना था, वहीं पहुंचा हूं.'यह है पुण्योदय।' मलया सोमा को पहचान चुकी थी। पर वह मौन खड़ी रही। वह पुरुष बन गयी थी, इसलिए पहचाने जाने की चिन्ता ही समाप्त हो चुकी थी। महाबल ने कहा---'बहन ! तू निश्चित रह । हमारे रहते हुए कोई भी तेरा अहित नहीं कर पाएगा। परन्तु तेरी एक बात समझ में नहीं आयी।' 'कौन-सी बात?' 'तेरे पर और तेरी स्वामिनी पर राजा को कोप क्यों?' । 'क्षत्रियकुमार ! मेरी स्वामिनी और कोई नहीं, वह महाराजा वीरधवल की दूसरी रानी कनकावती है। उसने एक भयंकर कुकर्म कर डाला। उस कुकर्म के कारण ही निर्दोष राजकन्या मलयासुन्दरी को मृत्यु का वरण करना पड़ा'इतना कहकर सोमा ने आकस्मिक ढंग से प्राप्त लक्ष्मीपुंज हार की बात तथा अन्य घटनाएं संक्षेप में कह सुनायीं। ___'ओह ! तब तो सारी विपत्ति का मूल वह लक्ष्मीपुंज हार ही है। वह हार अब कहां है ?' महाबल को लक्ष्मीपुंज हार की बात सुनकर परम प्रसन्नता हुई थी। १०८ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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