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________________ २१. विधि की क्रूरता महाराजा वीरधवल रानी कनकावती और दासी सोमा के बीच हो रही बात को सुनकर मर्माहत हो गए। उन्हें अपने अन्याय का भान हुआ और उसकी प्रचुर वेदना से आहत होकर वे मूच्छित हो गए। महाराजा के मूच्छित होने की बात सारे राजभवन में फैल गयी और सभी लोग इधर-उधर दौड़-धूप करने लगे। महाप्रतिहार ने तत्काल वैद्य को बुलाने के लिए एक घुड़सवार को भेजा। महादेवी चंपकमाला भी आ गयी और वह अत्यन्त व्यथा का अनुभव करने लगी। महामंत्री ने शीतोपचार प्रारंभ किया और कुछ ही क्षणों के पश्चात् महाराजा में प्रकंपन होने लगे। उन्हें होश आया और वे त्रुटित स्वर में बोल पड़े-'मेरी मलया'कहां है मेरी मलया ? कहां है मेरी लाडली?' महामंत्री बोले-'महाराज! चिन्ता न करें। जो होना था, वह घटित हो चुका है। अब उसका पुनः अनुसंधान नहीं किया जा सकता । आप निश्चिन्त रहें। आप पहले स्वस्थ बनें, चिन्ता न करें।' इतने में ही राजवैद्य आ पहुंचा। उसने महाराजा की अवस्था देखी। उसने कहा—'मंत्रीश्वर ! चिन्ता की कोई स्थिति नहीं है । हृदय पर आघात होने से मू आयी है, यह अभी ठीक हो जाएगी।' राजवैद्य ने पीले रंग की एक गुटिका निकाली। उसे पानी के साथ महाराजा को निगलने के लिए कहा। ज्यों ही वह गुटिका गले के नीचे उतरी, महाराजा के सारे शरीर में झनझनाहट होने लगी और दो-चार क्षणों में ही महाराजा ने आंखें खोल दीं। __ महारानी ने अपने उत्तरीय के कोने से आंसू पोंछे और महाराजा की ओर देखा। महाराजा ने चारों ओर देखा। महारानी पर नजर टिकाकर बोले'देवी ! मेरे से महान् अन्याय हो गया है। परम पवित्र हृदय वाली राजकुमारी महाबल मलयासुन्दरी १०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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