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ने महारानी चंपकमाला को बुलाने के लिए दो दासियों को कहा और स्वयं महाराजा की मूर्छा को तोड़ने का उपचार करने लगे।
यह अवसर रानी कनकावती के पलायन के लिए स्वर्णिम अवसर बन गया । वह राजभवन के बाहर आ गयी। उसने सोमा से कहा---'सोमा ! यदि हम दोनों एक साथ रहेंगी तो पकड़े जाने का भय रहेगा । मैं अपनी सखी मगधा के पास जा रही हूं और तू भी कहीं गुप्तरूप से चली जा।'
सोमा ने सोचा-ठीक अवसर पर रानी ने धक्का मारा है। रानी मगधा वेश्या के यहां जाकर छिप जाना चाहती है और मुझे...
सोमा कुछ नहीं बोली। वह अकेली गोला नदी के किनारे पर अवस्थित वन की दिशा में चल पड़ी।
रानी कनकावती ने अपनी सखी मगधा वेश्या का द्वार खटखटाया।
१०४ महाबल मलयासुन्दरी
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