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________________ 'नहीं, अब मैं वहीं जा रहा हूं।' 'अच्छा, तुम महाराजा के पास जाओ, मैं भी आ रहा हूं। मुझे विश्वास है कि राजकुमारी पूर्ण निर्दोष है। "निष्कलंक है, चंद्र जैसी निर्मल है. ''अब राजकन्या के प्राण तो नहीं बचाए जा सकते । पर राजा को अपने अन्याय का भान तो कराया ही जा सकता है।' ____ 'महामंत्रीश्वर ! अब अन्याय का भान कैसे कराया जा सकेगा ! राजकुमारी के बिना सही हकीकत कौन बताएगा?' नगररक्षक ने कहा । 'जैसे सत्य प्रकट होता है वैसे ही असत्य गुप्त नहीं रह सकता । तुम चलो, मैं भी आता हूं।' नमस्कार कर नगररक्षक चला गया। महामंत्री ने सोचा-इस सारे षड्यंत्र के पीछे रानी कनकावती का हाथ होना चाहिए। वह ईर्ष्या की प्रतिमूर्ति है। उसने यह जघन्य कार्य नहीं किया हो, इसकी संभावना कैसे की जा सकती है ! सोचते-सोचते मंत्रीश्वर ने मन-ही-मन कुछ निश्चय किया और वस्त्र बदलकर रथ में बैठ राजभवन की ओर प्रस्थान कर दिया। नगररक्षक के द्वारा मलया के सारे समाचार सुन महाराजा निश्चित हो गए और रानी कनकावती परम मुदित हुई। महारानी चंपकमाला भीतर-हीभीतर रोने लगी और अत्यन्त पीड़ा का अनुभव करने लगी। और महाराज वीरधवल के पास महामंत्रीश्वर आ पहुंचे। नगररक्षक प्रणाम कर चला गया। महाराजा ने कहा--'मंत्रीश्वर ! सारा कार्य सहजरूप में हो गया। मलया ने ही अंधकूप में गिरने की प्रार्थना की थी।' महामंत्री ने गंभीर होकर कहा—'महाराजाधिराज ! आप इसे उत्तमाकार्य मान रहे हैं ? मेरी दृष्टि में यह भयंकर कलंकदायी कार्य हुआ है ' 'महा अनिष्ट हुआ है।.. ___ 'महा-अनिष्ट ! तो क्या मुझे अपने परिवार का संहार होते देखना चाहिए था? राजा ने पूछा। महामंत्री और महाराजा के बीच दो घटिक पर्यन्त बातचीत होती रही। महामंत्री ने महाराजा को अनेकविध रहस्य समझाए । अन्त में कहा—'महाराज ! आपके हाथों से महान् अन्याय हो चुका है। राजकुमारी मृत्यु को प्राप्त हो चुकी है, परन्तु आपको अपने कृत्य का भान हो, इसलिए मैंने इतना कुछ कहा है। महारानी कनकावती अभी कहां है ? ___'आपके आने से पूर्व ही वह अपने आवास में चली गई है। क्या उसे यहां बुला भेजूं?' महाराजा ने कहा।। महाबल मलयासुन्दरी १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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