SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०. रानी भाग गई राजकुमारी मलयासुन्दरी जब पातालमूल उस अंधकूप में मौत का वरण करने कूद पड़ी, तब उसको पहुंचाने आए हुए नगररक्षक और अन्य सैनिक फूट-फूटकर रो पड़े । 'नगररक्षक ने तो वहीं कह दिया था कि नौकरी कैसी भी क्यों न हो, वह अन्ततोगत्वा है तो पराधीनता ही । मेरा यह सौभाग्य है कि एक निर्दोष राजकुमारी का वध मेरे हाथों से नहीं हुआ ।' यह कहता हुआ नगररक्षक सैनिकों को साथ ले नगरी की ओर चल पड़ा । महामंत्री सुबुद्धि नगररक्षक की प्रतीक्षा में बैठे हुए थे । रात्रि के प्रथम प्रहर के बाद नगररक्षक आया और उसने राजकुमारी के कुएं में कूद पड़ने की बात रोतेरोते कही । महामंत्री सुबुद्धि को प्रबल आघात लगा । उसे लगा कि महाराजा के हाथ से एक जबरदस्त अन्याय हो गया है । इस अन्याय का न निवारण हो सका और न महाराजा का निश्चय ही बदला । महामंत्री जानते थे कि मलया कुल की गौरव है । उससे कुल को कलंक लगे, वैसा आचरण कभी नहीं हो सकता । महामंत्री ने नगररक्षक से पूछा - 'क्या राजकुमारी ने कुछ कहा भी था ?" 'नहीं, मैंने राजकन्या से बहुत प्रार्थना की कि आप सच-सच बताएं और इससे बच जाएं—इस विषय में उन्होंने कुछ नहीं कहा। अंत में इतना सा कहानगररक्षक ! तुम तनिक भी दुःख मत करना । मुझे अपने ही पूर्वकर्मों को भोगना पड़ रहा है । आप कोई दोषी नहीं हैं । माता-पिता के वात्सल्य को खोकर संतान का जीना व्यर्थ है "इसके अतिरिक्त राजकुमारी ने कुछ भी नहीं कहा ।' 'उस लक्ष्मीपुंज हार के विषय में कोई प्रश्न किया था ?" 'हां, किन्तु राजकुमारी ने कोई उत्तर नहीं दिया । सब कुछ अपने ही कर्मों का दोष है, हार तो निमित्त मात्र है, इतना ही कहा था ।' 'हूं." महाराजा को समाचार ज्ञात करा दिया !' १०० महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy