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'कुमार ! महाराजा ने मेरे से लक्ष्मीपुंज हार मांगा। वह हार मैं उन्हें कैसे दें पाती ! मैंने झूठ कहा कि हार चोरी चला गया है। इससे पिताश्री का संशय दृढ़ हो गया। उन्होंने मुझे अपने कक्ष में नजरबंद कर डाला और मौत की सजा की आज्ञा दी। मैं किसी के हाथ से मरना नहीं चाहती थी, इसलिए अंधकूप में गिरकर मत्य का वरण करने की प्रार्थना पिताश्री से की। पिताश्री ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली और मैं मानती हूं कि इस स्वीकृति के पीछे मेरे सद्कर्मों ने कार्य किया है। नगररक्षक के साथ मैंने मौत के मुंह में जाने के लिए इस नदी के तट पर स्थित उस अंधकूप की ओर प्रस्थान कर दिया। मेरी सारी आशाएं छिन्न-भिन्न हो चुकी थीं। इस जन्म में मैं आपको प्राप्त नहीं कर सकूगी, यह मुझे दृढ़ विश्वास हो चुका था। मैं सन्ध्या के समय कूप पर आयी। नगररक्षक मुझे वहां छोड़ दुःखी मन से मुझे देखता रहा । मैंने नमस्कार महामंत्र की कुछ क्षणों तक आराधना की। और नमस्कार महामंत्र रटते-रटते उस भयंकर अंधकूप में छलांग लगा दी।
'ओह ! विधि की विडम्बना ! अरे, उस अंधकूप से तुझे किसने निकाला ? तू अजगर के मुंह में कैसे फंस गई ?' ___'प्राणेश ! जीवन में जब पाप और पुण्य के बीच संघर्ष होता है, तब नहीं कहा जा सकता कि कौन जीतेगा ! मैं कूप में पड़ी 'कूप अत्यन्त गहरा था.. उसमें पानी नहीं था.."उससे कोई बाहर निकाले, यह अशक्य था मौत की प्रतीक्षा करती हुई मैं मात्र नवकार महामंत्र का जाप तन्मयता से कर रही थी.. मैं कितनी गहराई में जा पड़ी, इसका मुझें अब भी भान नहीं है, किन्तु मैं तल तक नहीं पहुंची। बीच में ही कहीं ऐसी मुलायम झाड़ी पर अटक गई। मैंने आंखें खोलीं। कुछ पवन और प्रकाश का अनुभव हुआ । मैं उस झाड़ी की लटकती डाल को पकड़कर धीरे-धीरे उस ओर लटक गई। मुझे लग रहा था कि यह शाखा टूटेगी और मैं नीचे पाताल में जा गिरूंगी। किन्तु दूसरे ही क्षण मुझें कुछ गड्ढा-सा दीखा. मैंने उस पर अपना पैर रखा ''वह गड्ढा नहीं था, एक संकरी सुरंग थी 'नवकार मंत्र का स्मरण करती हुई मैंने उस सुरंग में प्रवेश किया 'मैं बच जाऊंगी, इसकी कल्पना करना भी मेरे लिए दुरूह था। फिर भी नवकार मंत्र का सहारा ले, मैं लेटकर सरकने लगी। पता नहीं मैं उस सुरंग में कितनी दूर सरकती रही धीरे-धीरे चलकर जब मैं उस सुरंग से बाहर निकली तब रात हो चुकी थी.''मैं बच गई इसका मुझे तनिक हर्ष हो रहा था। किन्तु दूसरे ही क्षण मेरे पापों ने पुण्य को दबोचा और मैं एक विशालकाय अजगर के मुंह में फंस गई.. अब मेरी मौत निश्चित थी."उस अजगर के मुंह से निकलने का प्रयत्न करना मेरे लिए अशक्य थामैं शक्तिहीन हो चुकी थी. मैंने आंखें बंद कर ली.. 'मेरी चेतना भी लुप्त हो गई और
महाबल मलयासुन्दरी १७
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