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________________ मलया ने कहा--'चलो।' महाबल ने मलया का हाथ पकड़ लिया। नदी निकट ही थी। दोनों संभल-संभलकर चले और कुछ ही क्षणों में नदी के तट पर आ पहुंचे। दोनों ने शरीर और वस्त्र साफ किए। मुख-प्रक्षालन कर पुन: उस विशाल आम्रवृक्ष के नीचे आकर शिलाखंड पर बैठ गए। __ मलया ने कहा---'कुमार ! अब आप मुझे बताएं कि आप यहां कैसे आए ?' 'प्रिये ! मैं यहां अचानक आया हूं.""मेरी यह निशा-यात्रा रोमांचक और आश्चर्यकारी हैं'–कहकर महाबल ने पूरा वृत्तान्त ज्यों का त्यों मलयासुन्दरी को कह डाला। युवराज की इस अभीत और साहसपूर्ण यात्रा की कथा को सुनकर मलया का चित्त पुलकित हो उठा । उसने प्रसन्न स्वरों में कहा-'प्रियतम ! आपने भी मौत के साथ भयंकर संग्राम किया है..." 'मलया ! तू अपनी बात बता। महाराज की प्रिय राजकुमारी अजगर के मंह में कैसे फंसी ? जिस राजकुमारी के इशारे पर सकड़ों दास-दासी और सैनिक प्राण न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं, वह अकेली कैसे ? तुझे इस विकट स्थिति का सामना क्यों करना पड़ा? मेरा मन अभी भी इन प्रश्नों में उलझ रहा है। तू शीघ्र अपनी बात बता।' 'युवराज ! कर्म का विपाक बड़ा विचित्र होता है ! वह क्या, कब, कैसे कुछ कर डालता है, जिसका किसी को पता ही नहीं लगता। मैं राज-परिवार में परम आनन्द में थी। मेरा स्वयंवर तय हो चुका था। उसकी तैयारियां हो रही थीं। महाराजा और महारानी, मेरे पिताश्री और मातुश्री-दोनों का मन मुझे देख-देखकर बांसों उछल रहा था। हजारों-लाखों स्वर्ण मुद्राएं व्यय की जा चुकी थीं। मेरे लिए वस्त्र और आभरणों का अंबार लग चुका था। किन्तु एक दिन... अपरमाता ने महाराजश्री से क्या कहा, मैं नहीं जानती, किन्तु मेरे पर यह मिथ्या आरोप लगाया गया कि मैं आपसे मिलकर स्वयंबर के समय पिताश्री का राज्य हड़प लूंगी और पितृकुल का विनाश कर आपको राज्य-सिंहासन पर बिठा, मैं राजरानी बनूंगी। और कुमार्यावस्था में मैंने जो आपसे संबंध बनाए रखा था, उससे कुल का गौरव तिरस्कृत हुआ है। इस आक्षेप की बात पिताश्री ने नहीं कही, किन्तु जब मैं मौत की सजा भोगने के लिए नगर के बाहर आयी, तब नगररक्षक ने मुझे यह बात बतायी थी।' बीच में ही महाबल ने पूछा-'किन्तु इस कल्पित बात पर महाराजा ने विश्वास कैसे कर लिया ? तेरे पर जो वात्सल्य था, उसमें इस कल्पित वृत्तान्त की सचाई का अस्तित्व ही कहां रह जाता है !' २६ महाबल मलयासुन्दरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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