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________________ 'मेरे नाम से परिचित यह स्त्री कौन होगी?' यह सोचकर महाबल अत्यन्त विस्मित हुआ। वह युवती के पास गया 'इधर-उधर से युवती का मुंह देखने लगा'"मुंह देखते ही वह चमक उठा । हृदय कांपने लगा ''अरे, यह तो चंद्रावती नगरी की राजकन्या मलयासुन्दरी है ! ओह ! चन्द्रावती की प्रिय राजकुमारी यहां कैसे आ पहुंची? अभी-अभी इसका स्वयंवर रचा गया है। 'इतनी भारी विपत्ति में यह कैसे फंस गई? यह अत्यन्त दुःखद घटना है। यह भी पुण्ययोग से उचित ही हुआ। अनेक दुःख दीखने में भयावह होते हैं, पर उनका परिणाम सुखद होता है । आकाशचारिणी देवी का कटा हुआ हाथ यदि मैं नहीं पकड़ता और यदि वह देवी मुझे यहां नहीं लाती तो मेरे हृदय की आशा समाप्त हो जाती' 'जो कुछ होता है वह अच्छे के लिए ही होता है। ऐसे सोचते हुए महाबल वहां बैठ गया। उसने मलयासुंदरी का मस्तिष्क अपनी गोद में लिया और अपने उत्तरीय से हवा देने लगा। थोड़े समय पश्चात् मलयासुन्दरी में चेतना के स्पंदन दृष्टिगोचर हुए। महाबल हर्षोत्फुल्ल होकर मलया का आनन देखता रहा। ____ अद्ध घटिका के प्रयत्न के पश्चात् मलयासुन्दरी के होंठ फड़क गए। वह मंद स्वर में कुछ गुनगुनाने लगी। महाबल ने सुना। महाबल अत्यन्त प्रसन्न चित्त से मलया को सचेत करने के लिए उसके हाथ-पैर और मस्तक दबाने लगा। कुछ क्षणों पश्चात् मलया ने आंखें खोली. 'महाबल अत्यन्त हर्षित हो रहा था। वह उस वन-प्रदेश, रात्रिकाल और सारी परिस्थितियों को विस्मृत कर मलया को देख रहा था। प्रियतमा की आंखें खुली हैं, यह देखकर वह बोला-'मृगनयनी ! स्वस्थ हो जाओ--तेरी यह दशा देखकर मेरा मन अत्यधिक व्यथित हो रहा है। इधर देख-मेरी ओर दृष्टि कर।' ___मलया इन शब्दों के स्वर को सुनकर चमक उठी। अभी तक वह अचेत थी। इस विजन वन में प्रियतम के आने की कोई संभावना ही नहीं थी। उन चिरपरिचित स्वरों को सुनकर मलया का रोम-रोम हर्ष से नाचने लगा। वह अवाक् बनकर महाबल की ओर देखती रही। 'प्रिये ! कुछ स्वस्थ तो हो ?' 'ओह ! आप ?' कहती हुई मलया तत्काल बैठ गई। महाबल का एक हाथ अपने हाथ में लेकर बोली---स्वामिन् ! आप यहां कैसे? मैं कैसे बच गई ? मैं कोई स्वप्न तो नहीं देख रही हूं ?' 'नहीं, मलय ! यह स्वप्न नहीं, जीवंत सत्य है, यथार्थ है। किन्तु ये सारी बातें हम बाद में करेंगे। तू मेरे साथ नदी के किनारे चल.''तेरा शरीर और तेरे कपड़े अजगर के कारण मैले हो गए हैं।' महाबल मलयासुन्दरी ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003181
Book TitleMahabal Malayasundari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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