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स्थल है ? अपने नगर से मैं कितना दूर आ गया हूं? यदि मैं स्वयंवर में नहीं पहुंच सका तो मलया की क्या दशा होगी? अरे, इससे भी अधिक तो चिन्ता का विषय यह है कि यदि मैं निश्चित अवधि से पूर्व लक्ष्मीपुंज हार माता को नहीं दे पाया तो माता के प्राण-विसर्जन का भागी बनूंगा। ओह ! अब मैं क्या करूं? कर्म की गति विचित्र है ! एक क्षण में वह हास्य बिखेरती है और दूसरे ही क्षण में क्रन्दन का तांडव दिखाती है। विधि के इस क्रीड़ा के समक्ष राजा और रंक सभी को हार माननी पड़ती है।
अरे, इस अपरिचित भूमि में अब मैं किस ओर जाऊं? मैंने भयंकर भूल की है । मुझे देवी को कहना चाहिए था कि तू मुझे मेरे भवन में उतार दे परन्तु मेरी बुद्धि जड़ बन गई थी । ऐसा क्यों हुआ ?
महाबल ने खड़े-खड़े नमस्कार महामंत्र का जाप प्रारंभ किया। चित्त की स्थिरता होने लगी 'उसने देखा, चारों ओर भयंकर अरण्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दीख रहा था। उसे आभास हुआ कि थोड़ी दूरी पर सरिता बह रही है पर यह स्थल,कौन-सा है ! किससे पूछा जाए? ऐसी भयावह अटवी में कौन आए? ____ यह सोचकर वह एक शिलाखंड पर बैठ गया। उसने पुनः नमस्कार मंत्र की आराधना प्रारंभ कर दी।
महाबल को यह दृढ़ विश्वास था कि मंत्राधिराज महामंत्र नवकार की आराधना मनुष्य को मुक्ति के द्वार तक पहुंचाती है तो साथ-साथ अन्यान्य आपदाओं को भी दूर करती है। ___महाबल को यह शिक्षा अपने माता-पिता से बचपन में ही प्राप्त हो चुकी थी। नमस्कार महामंत्र की आराधना उसका स्वभाव बन गया था। वह प्रतिदिन इसकी आराधना करता । कभी इसे विस्मृत नहीं करता था।
महाबल ने आंखें बंद की और समस्त वृत्तियों को नवकार मन्त्र के कमलदल पर एकत्रित कर एकाग्र हो गया। रात का तीसरा प्रहर अभी पूरा नहीं हुआ
था।
और अचानक उसके कानों में कुछ शब्द सुनाई दिए।
महाबल मलयासुन्दरी १३
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