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८२ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
छेद-सूत्रों में आचार सम्बन्धी जिस प्रकार के नियम और उपनियमों का विवेचन संप्राप्त होता है उसी तरह का वर्णन बौद्ध साहित्य में भी प्राप्त होता है । विनयपिटक' में भी प्रायश्चित्त का विधान है। जिसमें विविध प्रकार के दोषों का उल्लेख करते हुए उसकी शुद्धि का वर्णन है। विस्तार भय की दृष्टि से हम यहाँ पर उसकी छेद-सूत्रों के साथ तुलना नहीं कर रहे हैं। पर हम विज्ञों का ध्यान इस ओर केन्द्रित करते हैं कि यदि विस्तार के साथ तुलनात्मक व समीक्षात्मक अध्ययन किया जाय तो बहुत कुछ नये तथ्य प्रकट होंगे और साथ ही यह परिज्ञान होगा कि श्रमणसंस्कृति की दोनों धाराओं में कितनी अधिक समानता है। साथ ही वैदिक परम्परा मान्य कल्प-सूत्र, श्रौत सूत्र और गृहसूत्र में वर्णित आचार-संहिता की तुलना छेद-सूत्रों के नियमोपनियमों के साथ सहज रूप से की जा सकती है।
यह बात स्पष्ट है कि छेद-सूत्रों का विषय अत्यन्त गहन है । मैं प्रबुद्ध पाठकों से विनम्र निवेदन करना चाहूंगा कि वे छेद-सूत्रों का अध्ययन करते समय पूर्वापरप्रसंगों को गहराई से समझने का प्रयत्न करें। ऐतिहासिक दृष्टि से वे स्थितियों को समझने का ध्यान रखें । जब तक साधक श्रमण धर्म के, आचार धर्म के गहन रहस्य, सूक्ष्म क्रिया-कलाप, न समझेगा तब तक वह छेद सूत्रों के मर्म को नहीं समझ सकेगा। छेद सूत्र ऐसे प्रकाश स्तम्भ है जिसके निर्मल आलोक में साधक अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न होने पर सही निर्णय ले सकता है। छेद-सूत्रों में जैन संस्कृति के गहन आचार और विचारों का जो विश्लेषण हुआ है, वह अद्वितीय है, अपूर्व है। उसमें संस्कृति की महान् गरिमा और महिमा रही है ।
समाचारी शतक में समयसुन्दरगणी ने छेद-सूत्रों की संख्या छः बतलायी है--
(१) दशाश्रुतस्कंध (२) व्यवहार (३) बृहत्कल्प (४) निशीथ (५) महानिशीथ और (६) जीतकल्प।
नन्दी सूत्र में जीतकल्प के अतिरिक्त पाँच नाम उपलब्ध होते हैं । यह स्मरण रखना चाहिए कि दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, और व्यवहार ये तीनों आगम चतुर्दश पूर्वी भद्रबाहु स्वामी ने प्रत्याख्यानपूर्व से निर्मूढ़ किये हैं । निशीथ का नि!हण प्रत्याख्यान नामक नौवें पूर्व से किया गया है । पंचकल्प चूणि के अनुसार निशीथ के
1 विनय पिटक-पाराजित पाली, भिक्खु पातिमोक्ख भिक्खुणी पातिमोक्ख । 2 समाचारी शतक-आगमस्थापनाधिकार । 3 नन्दीसूत्र ७७ । + (क) दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति, गाथा १, पत्र १ ।
(ख) पंचकल्पभाष्य, गाथा ११ । 5 निशीथभाष्य ६५०० । 8 पंचकल्पणि पत्र १, लिखित ।
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