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________________ arat : एक विश्लेषण | ७१ जीवों में क्रमश: अधिक निर्मलता आती है। इसलिए ये तीन लेश्याएँ शुभ हैं और इन्हें धर्म लेश्याएँ कहा है । उपर्युक्त पंक्तियों में हमने जो विकिरणों के साथ तुलना की है वह स्थूल रूप से है । तथापि इतना स्पष्ट है कि लेश्या के लक्षणों में वर्ण की प्रधानता है । विकिरणों में आवृत्ति और तरंग की लम्बाई होती है । विचारों में जितने अधिक संकल्पविकल्प के द्वारा आवर्त होंगे वे उतने ही अधिक आत्मा के लिए अहितकर होंगे । एतदर्थ ध्यान और उपयोग व साधना के द्वारा विचारों को स्थिर करने का प्रयास किया जाता है । हम पूर्व ही बता चुके हैं कि लेश्याओं का विभाजन रंग के आधार पर किया गया है । प्रत्येक व्यक्ति के चेहरे के आसपास एक प्रभामण्डल विनिर्मित होता है जिसे 'ओरा' कहते हैं । वैज्ञानिकों ने इस प्रकार के कैमरे निर्माण किये हैं जिनमें प्रभामण्डल के चित्र भी लिये जा सकते हैं । प्रभामण्डल के चित्र से उस व्यक्ति के अन्तमनस में चल रहे विचारों का सहज पता लग सकता है। यदि किसी व्यक्ति के आसपास कृष्ण आभा है फिर भले ही वह व्यक्ति लच्छेदार भाषा में धार्मिक दार्शनिक चर्चा करे तथापि काले रंग की वह प्रभा उसके चित्त की कालिमा की स्पष्ट सूचना देती है | भगवान महावीर, तथागत बुद्ध, मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कर्मयोगी श्रीकृष्ण, प्रेममूर्ति क्राइस्ट आदि विश्व के जितने भी विशिष्ट महापुरुष हैं उनके चेहरों के आस-पास चित्रों में प्रभामण्डल बनाये हुए दिखाई देते हैं जो उनकी शुभ्र आभा को प्रकट करते हैं । उनके हृदय की निर्मलता और अगाध स्नेह को प्रकट करते हैं । जिन व्यक्तियों के आस-पास काला प्रभामण्डल है उनके, अन्तर्मानस में भयंकर दुर्गुणों का साम्राज्य होता है । क्रोध की आंधी से उनका मानस सदा विक्षुब्ध रहता है, मान के सर्प फूत्कारें मारते रहते हैं, माया और लोभ के बवण्डर उठते रहते हैं । वह स्वयं कष्ट सहन करके भी दूसरे व्यक्तियों को दुःखी बनाना चाहता है । वैदिक साहित्य में मृत्यु के साक्षात् देवता यम का रंग काला है, क्योंकि यम सदा यही चिन्तन करता रहता है कब कोई मरे और मैं उसे ले आऊँ । कृष्ण वर्ण पर अन्य किसी भी रंग का प्रभाव नहीं होता | वैसे ही कृष्णलेश्या वाले जीवों पर भी किसी भी महापुरुष के वचनों का प्रभाव नहीं पड़ता । सूर्य की चमचमाती किरणें जब काले वस्त्र पर गिरती हैं तो कोई भी किरण पुनः नहीं लौटती । काले वस्त्र में सभी किरणें डूब जाती हैं । जो व्यक्ति जितना अधिक दुर्गुणों का भण्डार होगा उसका प्रभामण्डल उतना ही अधिक काला होगा । यह काला प्रभामण्डल कृष्णलेश्या का स्पष्ट प्रतीक है । द्वितीय लेश्या का नाम नीललेश्या है । वह कृष्णलेश्या से श्रेष्ठ है । उसमें कालापन कुछ हलका हो जाता है । नीललेश्या वाला व्यक्ति स्वार्थी होता है । उसमें 1 उत्तराध्ययन ३४।२१-२२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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