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________________ ४६ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १ हौर्वतात ( स्वास्थ्य ) और ( ६ ) अमेरेतात ( अमरता ) । आहुरमज्दा को वही व्यक्ति उपलब्ध कर सकता है, जिसके जीवन में आचार, विचार, उच्चार तथा भावना में सत्य और शुचिता हो । [तृतीय विभाग ] प्रज्ञा पुरुषों की दृष्टि में ईश्वर भारत के दर्शन प्रवर्तकों ने ही नहीं, अपितु विश्व के इतर चिन्तकों ने भी ईश्वर और उसके स्वरूप के सम्बन्ध में पृथक्-पृथक् रूप से विचार प्रस्तुत किये हैं । 'ईश्वर' शब्द का अर्थ इतना अत्यधिक विभिन्नता लिये हुए है कि सामान्य मानव समझ नहीं पाता कि ईश्वर का अस्तित्व है भी या नहीं ? यदि है तो उसका स्वरूप क्या है ? वह एक दूसरी से विरुद्ध मान्यताओं एवं कल्पनाओं के जाल में उलझ जाता है । ईश्वर के सम्बन्ध में, जितने भी दार्शनिक, कवि, वैज्ञानिक और साहित्यकार हुए, उन्होंने अनेक प्रणालियों का आश्रय लिया है। ईश्वर के अस्तित्व at सिद्ध करने के लिए या उसके अस्तित्व का खण्डन करने के लिए भी अपने ढंग से प्रबल तर्क दिये हैं । मानव जिज्ञासु है, वह जानना चाहता है कि प्राग् ऐतिहासिक काल के आदि जातियों से लेकर आधुनिक काल तक ईश्वर का चिन्तन किस रूप में हुआ है ? दर्शन के इतिहास में प्लेटो - अरस्तू से लेकर जोसिया - रायस और विलियम जेम्स तक तथा आधुनिक वैज्ञानिकों और चिन्तकों ने किस दृष्टिकोण से ईश्वर का चित्रण किया है ? चिन्तन के इतिहास में ईश्वर के अर्थ में किस प्रकार शब्दावली व्यवहृत हुई है ? हमें उन ईश्वरपरक शब्दों के वास्तविक अर्थ से परिचित होना चाहिए। यूनानी भाषा में एक शब्द है - ' थी - इज्म' ! यह शब्द व्यक्तिगत और आध्यात्मिक सत्ता के रूप में ईश्वर के लिए प्रचलित है । अंग्रेजी का शब्द 'डीइज्म', लैटिन भाषा का 'डायस' शब्द ईश्वर को सृजनकर्ता और नियामक के रूप में स्वीकार करता है । अंग्रेजी का शब्द 'पैथीइज्म' यूनानी भाषा के दो शब्दों के मिलन से बना है, जिसका अर्थ सर्व तथा ईश्वर है । इसके अभिमतानुसार ईश्वर ही सर्वस्व है और सर्वस्व ही ईश्वर है । इसमें ईश्वर का प्रकृति या जगत के साथ तादात्म्य स्थापित किया गया हैं । अंग्रेजी शब्द 'पालीथीइज्म' का अर्थ है-धर्म का कोई तन्त्र या सिद्धान्त जो बहु ईश्वरों में आस्था रखता हो । अंग्रेजी के शब्द 'मानोथीइज्म' का अर्थ है - वह सिद्धान्त जो ईश्वर के एक होने पर बल देता है । 'एथीज्म' शब्द ईश्वर के अस्तित्व का खण्डन करता है । आधुनिक चिन्तन में यह निरीश्वरवाद 'अज्ञेयवाद' के रूप में विश्रुत है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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