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४० | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
को मानने लगे । पहले जहाँ पूजा नहीं करते, वहीं पूजा और बलि की प्रथा चली। जो एक प्रकार से विकृति है ।
इस प्रकार आदिवासियों में चमत्कार प्रदर्शन करने वाले अच्छे-बुरे, मंगलकारी - विनाशकारी, कृपालु उन दोनों प्रकार की देव-शक्तियाँ मानी गयीं। वे देव - शक्तियाँ प्रसन्न भी होती थीं और अप्रसन्न भी । इस प्रकार सभी आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं को हम तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं: (१) भूत-प्रेत को शान्त करना (२) अति मानव शक्तियों को शान्त करना और (३) एक परम तत्त्व में विश्वास करना । इस प्रकार उनमें बहुदेववाद और एकेश्वरवाद दोनों प्रकार की विचारधारा प्राप्त होती है ।
साथ ही, आदिवासियों में ग्राम देवता, सीमा देवता आदि विविध प्रकार के देवों की कल्पनाएँ भी पनपने लगीं। इन देवों का धीरे-धीरे मानवीकरण हुआ । साथ ही जो व्यक्ति सद्गुणों से अलंकृत हुआ, उसे देव स्वरूप माना गया और धीरे-धीरे वह परमपिता, जगत्नियन्ता, सर्वश्रेष्ठ ओर महान् शक्ति का प्रतिनिधि बनकर उपास्य बन गया । भारतीय परम्परा में अवतारवाद का मूल बीज आदिवासी विश्वासों में पाया जाता है।
असीरिया और बेबिलोनिया में ईश्वर कल्पना
आधुनिक इतिहासकारों का मन्तव्य है कि असीरिया - बेबिलोनिया की संस्कृति और सभ्यता अत्यन्त प्राचीन है । इसमें प्रकृति की पूजा होती थी। पहले बहुदेववाद: प्रचलित था । संसार की श्रेष्ठता और अधमता, उच्चता-नीचता, अच्छाई-बुराई का प्रतिनिधित्व करने वाली अच्छी-बुरी शक्तियों पर इनका विश्वास था ।
afaatfoया निवासी त्रि-शक्ति में विश्वास रखते थे । उनकी दो देव त्रयी हैंपहली देव-त्रयी में—
(१) अनु - आकाश देवता जो स्वर्ग का स्वामी है ।
(२) बले - पृथ्वी देवता ।
(३) हुआ
-- जल देवता जो पाताल का स्वामी है ।
दूसरी देव-त्रयी में—
(१) शम्स [ सूर्य ], (२) सिन [ चन्द्र ], (३) इश्तर [ मंगलदेव ] थे ।
इन छह देवों के अतिरिक्त अन्य भी अनेक देव थे जैसे – 'रम्मान' - जो
भयंकर आँधी, तूफान, वर्षा और विद्युत-शक्ति को अपने नियन्त्रण में रखता था । वे ग्रह-देवताओं की भी उपासना करते थे, जैसे- निनिब [ शनि ], मर्दुक [ बृहस्पति ] नेर्गल [ शुक्र] आदि । बेबिलोनिया के निवासियों ने देवों के साथ उनकी पत्नियाँ, पुत्र-पुत्रियाँ, दास-सेवक आदि की भी कल्पना की और लघु देवता मानकर वे उनकी भी अर्चना करते थे ।
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