________________
ईश्वर : एक चिन्तन | ३६
मध्य आस्ट्रेलिया के निवासी कोटिशः लोगों का यह मानना था कि उस परम पिता का नाम 'अतनातू' है । वह अतनातू ऊर्ध्वगामी है। अतनातू की सन्तान भी अतनातू ही कहलाती है। उसकी सन्तान में से जिन्होंने अतनातू की उपासना और अर्चना की वे उसके प्रेम-पात्र बन गये और जिन्होंने उनकी अवज्ञा की वे स्वर्ग से च्युत कर दिये गये। ईश्वर के 'अतनातू' के अतिरिक्त विविध स्थानों पर आदिवासियों में 'बइराम' 'था-था-फुली' आदि अलग-अलग नाम प्रचलित थे। हाविट ने लिखा है कि आदिवासी ईश्वर के लिए न बलि चढ़ाते थे, और न उसकी प्रार्थना ही करते थे, परन्तु उनके मन में परम-पिता के प्रति एक निष्ठा थी।
____ अरुण्टा भी आदिवासियों की एक जाति है। उन्होंने परमपिता ईश्वर को 'त्वानीरिका' शब्द से सम्बोधित किया। प्रारम्भ में उनका अभिमत था कि वह परमपिता विश्व का स्रष्टा नहीं है, किन्तु धीरे-धीरे उनके चिन्तन में परिवर्तन हुआ और वे ईश्वर को निर्माता, कल्याणकर्ता और दुष्टों का नाश करने वाला मानने लगे।
भारत की एक आदि जाति संथाल है । संथालों को ईश्वर शक्ति में विश्वास है। वे अपने ईश्वर को 'सिंग बोंगा' के नाम से अभिहित करते हैं। उनमें ईश्वर का नाम 'ठाकुर', 'कन्दू' या 'कान्दू' भी प्रचलित है ।
संथाल लोग मन्दिर और मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं रखते। वे आदि शक्ति का निवास पहाड़, जंगल, नदी, गुफा, आदि में मानते हैं। उनका अभिमत है कि ये देवता दस प्रकार के हैं
(१) कान्दो-प्रमुख देवता है, वह जीवन भी प्रदान करता है और जीवन लेता भी है।
(२) अरोक बोंगा और अजेय बोंगा। (३) मृत पितरों की शक्तियां । (४) रंगो-रुजी-शिकारी शक्ति । (५) गांव के देवी-देवता। (६) गांव की सीमा शक्ति। (७) अकाल मृत्यु से मृत बालकों की आत्माएँ। (८) नाट्टियार बोंगा-ससुराल और नहर के देवता।
(६) किसार-बोंगा-जो प्रसन्न होने पर धन-समृद्धि देने वाले और अप्रसन्न होने पर मार डालने वाले।
(१०) युद्ध बोंगा।
ये देवता क्रोधी, भूखे और मानवों को दण्ड देने वाले हैं । अतः संथाल देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि चढ़ाते हैं। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि आदिवासियों ने प्रथम आद्य शक्ति को ईश्वर माना, किन्तु बाद में चलकर वे देवी-देवताओं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org