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ईश्वर : एक चिन्तन | ३७
- इस्लाम धर्म में ईश्वर इस्लाम धर्म का मूल स्रोत भी यहूदी धर्म है, ऐसा कितने ही चिन्तकों का मानना है । इस्लाम धर्म के आद्य प्रवर्तक मुहम्मद हैं, जिन्हें मुसलमान ईश्वर का अन्तिम पैगम्बर मानते हैं । ये ईश्वर के लिए "अल्लाह" शब्द का प्रयोग करते हैं, जो सर्वशक्तिमान है, सर्वज्ञानवान् है, सर्वसृष्टि-निर्माता, नियन्ता और सर्वसाक्षी है । उसी ने 'जन्नत' और 'जहान' बनाया । वह अकेला, स्वाश्रित और स्वयंभू है । 'अल्लाह' के अतिरिक्त उस ईश्वर के अन्य नाम या विशेषण हैं-रब्ब [महान स्वामी] अल्-रहमान [दयालु] अल्-बरी [कुछ में से निर्माण करने वाला] अल-बदी [आरम्भकर्ता] अल्वदूद [प्रेम करने वाला] अल्-रदूफ [दयालु] अल्-तब्बाव [कृपालु] अल्-हादी [मार्ग दर्शक] अल्-मोमिन [संरक्षक] अल्-मुहैमिन [आश्रयदाता] अल्-सलाम [शान्तिदाता] अल-कबीर [महान] अल्-जलील [परम कान्तिवान] अल-मजीद [ऐश्वर्ययुक्त] अलजब्बार [पहुँच से परे] अल्-अली [उदात्त] अल्-कुदूस [परम पवित्र] अल्-अजीम [दिव्य] इत्यादि ।
ईश्वर एक है । वह अदृश्य है । वह अवतार ग्रहण नहीं करता । न मनुष्य रूप में और न पशु-पक्षी या जड़ के रूप में वह व्यक्त होता है । यही कारण है कि इस्लाम धर्म में मूर्ति-पूजा का निषेध है । पर पीर और औलियों के मकबरों की पूजा की जाती है ; किन्तु उन्हें ईश्वर मानकर नहीं । ईश्वर की वाणी का संकलन ही ईश्वर के साक्षात्कार करने का एकमात्र उपाय है । इस्लाम धर्म में यह विश्वास है कि ईश्वर की वाणी मानव सुन नहीं सकता । वह देवदूतों द्वारा तथा चुने हुए पैगम्बरों के द्वारा ईश्वर की वाणी को सुन सकता है । उन्होंने ईश्वर के सात गुण माने हैं जो इस प्रकार हैं
(१) हयाह (जीवन)- ईश्वर असदृश, अद्वितीय, अननुकरणीय, अदृश्य, अनाकृति, अरूप, अरंग, अविभाजित, अनंश, अव्याकृत, एकमेवाद्वितीयम् है ।
(२) इल्म (ज्ञान)-ईश्वर सर्वज्ञ है। कोई भी बात उससे गुह्य या अगम्य नहीं है । उसने कभी भूल न की, न कर सकता है। प्रमाद, आलस्य, निद्रा का वह शिकार नहीं होता। वह चिर जागरूक है।
(३) कद्र (शक्ति)- ईश्वर सर्व शक्तिमान् है, वह मृतों को भी जीवित कर सकता है।
(४) इरादा (संकल्प)-ईश्वरेच्छा बलीयसी, वह जो चाहता है, वह करता है।
(५) सम (श्रुति)-ईश्वर के कान न होने पर भी वह सब ध्वनियां सुन सकता है।
(६) बशर (दृष्टि)-आँख न रहने पर भी वह सब कुछ देख सकता है।
(७) कलाम (वाणी)-वह बोलता है, पर मुंह व जबान से नहीं । ईश्वर की वाणी आज्ञा, निषेध, आश्वासन, धमकी आदि के रूप में आती है ।
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