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३६ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
आकाश को आलोक से आलोकित किया। उसी ने प्रकाश का निर्माण किया, अँधेरे का सुजन किया । वह बुद्धि का अधिष्ठाता तथा विश्व का निर्माता है । वह न्यायाधीश की तरह न्याय करता है।
पारसियों का मानना है कि अपरिवर्तनीय ईश्वर और परिवर्तनीय मानव के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाली कड़ी के रूप में "स्पेन्ता मैन्यू" नामक शक्ति है। वह आधी दैविक और आधी भौतिक है । वह शक्ति आहूर मजदा की प्रतिकृति व प्रतिरूप है । पारसियों का विश्वास है कि आहूर मजदा ने छ: प्रमुख देवदूतों को निर्मित किया है, वे इस प्रकार हैं :
(१) वोहु मानाह [उत्तम मन], (२) आशा [पुण्यकर्म], (३) खशथ्री [देवी राज्य], (४) आरमंती [शक्ति], (५) होरवातात [पूर्णता], (६) अमेरेतात [अमरता] ।
पारसी मतावलम्बियों का विश्वास है कि आहूर मजदा एक चिरन्तन प्रकाश है । वह प्रकाश विविध रूपों में व्यक्त होता है । इसीलिए उन्होंने अग्नि को ईश्वर का प्रतीक माना है और वे उसकी उपासना करते हैं। ईसाई धर्म में ईश्वर
विश्व के विश्रुत धर्मों में ईसाई धर्म प्रमुख है । इस धर्म को मानने वाले संसार के विविध अंचलों में करोड़ों की संख्या में विद्यमान हैं । इसके आद्य प्रवर्तक ईसा हैं। इस धर्म का मूल स्रोत यहूदी धर्म रहा है। स्वयं ईसा जीवन के प्रारम्भिक काल में यहूदी थे । उन्होंने यहूदी धर्म के ग्राह्य तत्त्व को ग्रहण कर तथा उसकी दुर्बलताओं को त्याग कर प्रेम और अहिंसा पर आधारित अपने विचार व्यक्त किये । उनके अभिमतानुसार भी ईश्वर स्रष्टा और उद्धारक है, वह प्रेम-स्वरूप है, वह सर्वोपरि सत्ता है, सर्वस्वामी है । ईसाई यह मानते हैं कि परमेश्वर के तीन रूप हैं-पिता, पुत्र और पवित्रात्मा । पवित्रात्मा, ईश्वर और मनुष्य के बीच तथा मनुष्य और मनुष्य के बीच सम्बन्ध संस्थापित करने वाली कड़ी है।
___ संसार ईश्वर की सृष्टि है और उसकी सृष्टि शुभ और मंगलमय है । तथापि सृष्टि में दुःख, दैन्य, पाप, पीड़ा आदि जो दृष्टिगोचर होता है उसका मूल कारण प्रथम स्त्री-पुरुष हौव्वा और आदम के ईश्वर-आदेश का उल्लंघन करना ही है । ईसाई मतानुसार मानव ईश्वर का प्रतिरूप है । परन्तु वह जन्म से अधःपतित है और उसका उद्धार ईसा और ईश्वर के हाथों में है।
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