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भारतीय चिन्तन में मोक्ष और मोक्ष-मार्ग | १३
अवस्थित होता है क्योंकि आगे धर्मास्तिकाय का अभाव है अतः वह आगे जा नहीं सकते । वह लोकाग्रवर्ती स्थान सिद्धाशिला के नाम से विश्रुत है । जैन साहित्य में सिद्ध शिला का विस्तार से निरूपण है, वैसा निरूपण अन्य भारतीय साहित्य में नहीं है ।
एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि जैन दृष्टि से मानव लोक ४५ लाख योजन का माना गया है तो सिद्ध क्षेत्र भी ४५ लाख योजन का है । मानव चाहे जिस स्थान पर रहकर साधना के द्वारा कर्म नष्ट कर मुक्त हो सकता है ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि मोक्ष आत्मा का पूर्ण विकास है और पूर्ण रूप से दुःखमुक्त है।
मोक्ष -मार्ग
अब हमें मोक्ष मार्ग पर चिन्तन करना है । जिस प्रकार चिकित्सा पद्धति में रोग, रोग- हेतु, आरोग्य और भैषज्य - इन चार बातों का ज्ञान परमावाश्यक है । वैसे आध्यात्मिक साधना पद्धति में (१) संसार, (२) संसार हेतु, (३) मोक्ष, (४) मोक्ष का उपाय, इन चार का ज्ञान परमावश्यक है ।
वैदिक परम्परा का वाङ्मय अत्यधिक विशाल है । उसमें न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा, उत्तरमीमांसा, प्रभृति अनेक दार्शनिक मान्यताएँ हैं । किन्तु उपनिषद् एवं गीता ऐसे ग्रन्थरत्न हैं जिन्हें सम्पूर्ण वैदिक परम्पराएँ मान्य करती हैं । उन्हीं ग्रन्थों के चिन्तन-सूत्र के आधार पर आचार्य पतंजलि ने साधना पर विस्तार से प्रकाश डाला है | उसमें हेय, हेयहेतु', हान, और हानोपाय, इन बातों पर विवेचन किया है । न्यायसूत्र के भाष्यकार वात्स्यायन ने भी इन चार बातों पर संक्षेप में प्रकाश डाला है ।"
तथागत बुद्ध ने इन चार सत्यों को आर्य सत्य कहा है : (१) दुःख (हेय ) (२) दुःख समुदय (हेय हेतु ) ( ३ ) दुःख निरोध (हान) (4) दुःखनिरोधगामिनी प्रतिपद् (हानोपाय ) 18
1 चरकसंहिता स्थान अ० श्लो० १२८-३० ।
2 योगदर्शन भाष्य २१-१५ ।
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योग दर्शन साधना पाद १६ ।
4 वही० १७ ।
6 वही ० २५ ।
० २८ ।
6 वही ०
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न्याय भाष्य 91919 |
8 मज्झिमनिकाय – भयभेख सुत्त ४
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