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________________ १०४ | चितन के विविध आयाम [खण्ड २] "हृदय से निकले हुए शब्द लच्छेदार नहीं होते और लच्छेदार शब्द कभी विश्वास लायक नहीं होते।" हृदय की गहराई से जो वाणी प्रस्फुटित होती है उसमें सहज स्वाभाविकता होती है जिस प्रकार कुएँ की गहराई से निकलने वाले जल में शीतलता भी सहज होती है, ऊष्मा भी सहज होती है और निर्मलता भी । जो वाणी सहज रूप से व्यक्त होती है वह प्रभावशील होती है । जो उपदेश आत्मा से निकलता है वह आत्मा को स्पर्श करता है, जो केवल जीभ से ही निकलता है वह अधिक प्रभावशील नहीं होता, हृदय को छू नहीं सकता, चूंकि उसमें चिन्तन, मनन और आचार का बल नहीं होता। साधारण व्यक्ति की वाणी वचन है और विशिष्ट विचारकों की वाणी प्रवचन है । क्योंकि उनकी वाणी में चिन्तन, भावना, विचार और जीवन दर्शन होता है। वे निरर्थक बकवास नहीं करते, किन्तु जो भी बोलते हैं उसमें गहरा अर्थ होता है, तीर के समान वेधकता होती है। एतदर्थ ही संघदासगणी ने बृहतकल्प भाष्य में कहा है गुणसुट्ठियस्स वयणं घय सरिसित्तुव्व पावओ भवइ । गुणहीणस्स न सोहइ नेहविहूणो जह पईवो । गुणवान व्यक्ति का वचन घृत-सिंचित अग्नि के समान तेजस्वी और पथ प्रदर्शक होता है जबकि गुणहीन व्यक्ति का वचन स्नेहरहित दीपक की भांति निस्तेज और अंधकार से परिपूर्ण । श्रद्धय सद्गुरुदेव जब बोलना प्रारम्भ करते हैं तब समस्त सभा मंत्र-मुग्ध हो जाती है । श्रोता का मन और मस्तिष्क उनकी प्रवचनधारा में प्रवाहित होने लगता है। आपकी वाणी में हास्य रस, करुण रस, वीर रस, और शान्त रस सभी रसों की अभिव्यक्ति सहज रूप से होती है । आपको किञ्चित मात्र भी प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती । वक्तृत्व कला आपका सहल स्वभाव है । आपकी वाणी में मधुरता, सहज सुन्दरता है, भावों की लड़ी, भाषा की झड़ी और तर्कों की कड़ी का ऐसा सुमेल होता है कि श्रोता झूम उठते हैं । आत्मा, परमात्मा, सम्यक् दर्शन, स्याद्वाद जैसे दार्शनिक विषयों को सहज रूप से प्रस्तुत करते हैं। श्रोता ऊबता नहीं, थकता नहीं । आपका प्रवचन सुलझा हुआ, अध्ययनपूर्ण और सरस होता है। इसीलिए लोग आपको वाणी का जादूगर कहते हैं । किस समय क्या बोलना, कैसे बोलना और कितना बोलना यह आपको ध्यान है । आपके प्रवचनों में नदी की धारा की भांति गति है और अग्नि-ज्वाला की तरह उसमें आचार-विचार का तेज व प्रकाश परिपुष्ट है । आपकी मधुर व जादू भरी वाणी से सामान्य जनता ही नहीं, किन्तु साक्षर व्यक्ति भी पूर्ण रूप से प्रभावित होते हैं। आप जहाँ भी जाते हैं वहां की जनबोली में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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