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८० | चिंतन के विविध आयाम [ खण्ड २ ]
जीवन का वर्णन करने पर भी वासना का विरेचन, प्रशम और निर्वेद पर अधिक बल दिया गया है । भोग पर त्याग की विजय, राग पर विराग की विजय बताई गई है । चरित्र में प्रेम, विवाह, मिलन, युद्ध, सैनिक अभियान, दीक्षा, तपश्चरण, विविध उपसर्गों पर विजय वैजयन्ती फहराता हुआ नायक आध्यात्मिक उत्क्रांति की ओर आगे बढ़ता है । काव्य का मूल उद्गम स्रोत आगम, प्रागैतिहासिक व ऐतिहासिक महापुरुषों के जीवन चरित्र और ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों के जीवन-वृत्त उसमें होते हैं जो जन-जीवन को निर्मल प्रेरणा प्रदान करने वाले होते हैं ।
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आचार्य हरिभद्र आचार्य हेमचन्द्र आचार्य मलयगिरि, आचार्य सिद्धसेन दिवाकर, उपाध्याय यशोविजय, समयसुन्दर गणी, आचार्य अकलंक, आचार्य समन्तभद्र, विद्यानन्द प्रभृति शताधिक जैन मनीषियों ने संस्कृत भाषा में साहित्य का निर्माण किया है । उनके द्वारा सहस्राधिक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ है । आधुनिक चिन्तकों ने उसके सम्बन्ध में शोध कार्य भी किया है जिससे सैकड़ों जैन महाकाव्यों का, जो अज्ञात थे, उनका पता लगा है ।
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आधुनिक युग में संस्कृत साहित्य का उतना प्रचार नहीं जितना अतीत काल में था । संस्कृत साहित्य का अध्ययन तो होता है, किन्तु काव्यों का प्रणयन बहुत ही कम मात्रा में हो रहा है। क्योंकि संस्कृत भाषा - भाषियों की संख्या अल्पतम होती चली जा रही है । जब जनता को संस्कृत भाषा का परिज्ञान नहीं है तो काव्य का आनन्द उन्हें किस प्रकार आ सकता है और बिना आनन्द के काव्य-सृजन को प्रोत्साहन नहीं मिल सकता | जब कवि के अन्तर्मानस में काव्य-निर्माण के प्रति अत्युत्कट जिज्ञासा होती है, तभी काव्य का प्रणयन होता है ।
श्रद्धेय सद्गुरुवर्य राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी महाराज का श्रीमद्-अमरसूरि काव्यम् अपने आप में एक अनूठा काव्य है । प्रस्तुत काव्य श्रद्धेय गुरुवर्य ने अचार्यसम्राट श्री अमरसिंह जी महाराज के पवित्र चरित्र को लेकर तेरह सर्गों में लिखा । इसमें स्रग्धरा, शार्दूलविक्रीडित, वसन्तलिका प्रभृति विविध छन्दों का उपयोग हुआ है और साथ ही रूपक, वक्रोक्ति, उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि विविध अलंकारों का प्रयोग हुआ है ।
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