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भारतीय साहित्य में काव्य-मीमांसा | ७५
भारतीय चिन्तकों ने काव्य के मुख्य दो भाग किये हैं-प्रेक्ष्यकाव्य और श्रव्यकाव्य । जो कात्य रंगमंच पर अभिनय करने योग्य हो वह प्रेक्ष्यकाव्य है।' ऐसे काव्यों की पूर्ण आनन्द की उपलब्धि आँखों से देखने पर ही हो सकती है। श्रव्यकाव्य वह है जो कानों से सुना जाय । मधुर स्वर से जो गाया जाता है और जिसे सुनकर आनन्द की अनुभूति होती है, वह श्रव्यकाव्य है । प्राचीन काल में लेखन की परम्परा कम थी। इसलिए स्मृति के सहारे ही काव्य को स्मरण रखा जाता था, इसलिए वह श्रव्यकाव्य कहलाता था। आज श्रव्यकाव्य को अधिकांश रूप में पढ़ा ही जाता है, पर उसे पाठ्यकाव्य न कहकर श्रव्यकाव्य ही कहा जाता है । प्रेक्ष्यकाव्य भी पढ़े जाते हैं, किन्तु उसका वास्तविक आनन्द देखने में आता है । आचार्य हेमचन्द्र ने प्रेक्ष्यकाव्य के पाठ्य और गेय ये दो भेद किये हैं--पाठ्य में नाटक, प्रकरण, नाटिका, समवकार, ईहामग, व्यायोग, डिम, उत्सृष्टिकांग, प्रहसन, भाण, वीथी तथा सट्टक आदि हैं। और गेय में डोम्बिका, प्रस्थान, शिंगक, भाणिका, प्रेरण, रामाक्रीड, हल्लीसक, रासक, गोष्ठी, श्रीगदित और राग काव्य आदि हैं । यहाँ पर हम उन सभी के भेद और प्रभेदों पर चिन्तन न कर, श्रव्यकाव्य के तीन भेद हैं-- गद्य, पद्य और मिश्र उस पर विचार करते हुए मूल विषय पर प्रकाश डालेंगे।
गद्यकाव्य वह है जो आवश्यक काव्य गुणों से अलंकृत हो । साथ ही उसमें छन्द योजना का अभाव होता है । गद्यकाव्य को कथा और आख्यायिका इन दो विभागों में विभक्त कर सकते हैं । आचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार आख्यायिका गद्यमय रचना होती है । जिसमें धीरोदात्त नायक अपने जीवनवृत्त को अपने मुंह से अपने मित्र आदि को बताता है । उसमें रोमांचक तत्त्व कन्यापहरण, संग्राम आदि होते हैं। संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ "हर्ष चरित्र" को इसमें लिया जा सकता है।
1 प्रेक्ष्यमभिनेयम् ।
-काव्यानुशासन ८-१ की वृत्ति (आ० हेमचन्द्र) 2 श्रव्यमनभिनेयम् ।
-वही० ८-१ प्रेक्ष्यं पाठ्यं गेयं च ।
-हेमचन्द्र, काव्यानुशासन ८-२ पाठ्यं नाटकप्रकरणनाटिकासमवकारेहामृगडिमव्यायोगोत्सृष्टिकांकप्रहसन भाणवीथी सट्टकादि ।
-वही० अध्याय ८ सूत्र ३ 5 गेयं डोम्बिकाभाणप्रस्थानशिंगकभाणिकाप्रेरणरामाक्रीडहल्लीसकरासगोष्ठी श्रीगदितरागकाव्यादि।
-वही० अध्याय ८, सूत्र ४ 8 तच्च गद्य-पद्य मिश्रभेदैस्त्रिधा।
-वाग्भट, काव्यानुशासन गद्यमपाद-पदसन्तानच्छन्दो रहितो वाक्यसंदर्भः। -वाग्भट, काव्यानुशासन काव्यानुशासन ८-१० वृत्ति हेमचन्द्र ।
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