SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] वाचक कल्याणतिलक वाचक कल्याणतिलक ने छप्पन गाथाओं में कालकाचार्य की कथा लिखी।। हीरकलश मुनि हीरकलशमुनि ने संवत् १६२१ में 'जोइस-हीर' ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ज्योतिष की गहराई को प्रकट करता है। मानदेव सूरि मानदेव सूरि का जन्म नाडोल में हुआ । उनके पिता का नाम धनेश्वर व माता का नाम धारिणी था। इन्होंने 'शांति स्तव' और 'तिजय पहुत्त' नामक स्तोत्र की रचना की। नेमिचन्दजी भण्डारी नेमिचन्दजी भण्डारी ने प्राकृत भाषा में षष्टिशतक प्रकरण' जिनवल्लभसूरि गुण वर्णन एवं पार्श्वनाथ स्तोत्र आदि रचनाएं बनाई हैं ।' स्थानकवासी मुनि ___ राजस्थानी स्थानकवासी मुनियों ने भी प्राकृत भाषा में अनेक ग्रन्थों की रचनाएँ की हैं। किन्तु साधनाभाव से उन सभी ग्रन्थकारों का परिचय देना सम्भव नहीं है । श्रमण हजारीमल जिनकी जन्मस्थली मेवाड़ थी उन्होंने 'साहुगुणमाला' ग्रन्थ की रचना की थी। जयमल सम्प्रदाय के मुनि श्री चैनमल जी ने भी श्रीमद्गीता का प्राकृत में अनुवाद किया था। पण्डित मुनि श्री लालचन्द जी "श्रमणलाल" ने भी प्राकृत में अनेक स्तोत्र आदि बनाए हैं। पं० फूलचन्द्र जी म० "पुफ्फ भिक्खु' ने सुत्तागमे का सम्पादन किया और अनेक लेख आदि प्राकृत में लिखे हैं। राजस्थान केसरी, पण्डित प्रवर श्री पुष्कर मुनिजी म० ने भी प्राकृत में स्तोत्र और निबन्ध लिखे हैं। आचार्य श्री घासीलालजी आचार्य घासीलाल जी महाराज एक प्रतिभासम्पन्न सन्तरत्न थे। उनका 1 तीर्थंकर वर्ष ४, अंक १, मई १६७४ । 2 मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि, अष्ट शताब्दी स्मृति ग्रन्थ 'जोइसहीर'-महत्वपूर्ण खरतरगच्छीय ज्योतिष ग्रन्थ लेख, पृष्ठ ६५। 2 (क) प्रभावक चरित्र-भाषान्तर, पृष्ठ १८७ । ---प्रकाशक-आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर, वि० सं० १९८७ में प्रकाशित । (ख) जैन परम्परा नो इतिहास भाग-१ पृ० ३५६ से ३६१ । · मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मति ग्रन्थ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy