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४ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
स्याद्वाद मंजरी में मल्लिषण ने लिखा है-न्याय-वैशेषिकों के मोक्ष की अपेक्षा तो सांसारिक जीवन अधिक श्रेयस्कर है, चूंकि सांसारिक जीवन में तो कभीकभी सुख मिलता भी है, पर न्याय-वैशेषिकों के मोक्ष में तो सुख का पूर्ण अभाव है।।
कर्मयोगी श्रीकृष्ण का एक भक्त तो न्याय-वैशेषिकों के मोक्ष की अपेक्षा वृन्दावन में सियार बनकर रहना अधिक पसन्द करता है। श्री हर्ष भी उपहास करते हुए उनके मोक्ष को पाषाण के समान अचेतन और आनन्दरहित बताते हैं ।
___ न्याय-वैशेषिक व्यावहारिक अनुभव के आधार पर समाधान करते हैं कि सच्चा साधक पुरुषार्थी, मात्र अनिष्ट के परिहार के लिए ही प्रयत्न करता है । ऐसा अनिष्ट परिहार करना ही उसका सुख है । मोक्ष स्थिति में भावात्मक चैतन्य या आनन्द मानने के लिए कोई आधार नहीं है । उनके मन्तव्यानुसार मोक्ष नित्य या अनित्य, ज्ञान, सुख रहित केवल द्रव्य रूप से आत्मतत्त्व की अवस्थिति है। सांख्य और योगदर्शन
सांख्य और योग ये दोनों पृथक्-पृथक् दर्शन हैं, पर दोनों में अनेक बातों में समानता होने से यह कहा जा सकता है कि एक ही दार्शनिक सिद्धान्त के ये दो पहलू हैं । एक सैद्धान्तिक, तो दूसरा व्यावहारिक है । सांख्य तत्त्व मीमांसा की समस्याओं पर चिन्तन करता है तो योग कैवल्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न साधनों पर बल देता है। .
सांख्य पुरुष और प्रकृति के द्वैत का प्रतिपादन करता है। पुरुष और प्रकृति ये दोनों एक-दूसरे से पूर्ण रूप से भिन्न हैं । प्रकृति सत्व, रज और तम इन तीनों की साम्यावस्था का नाम है। प्रकृति जब पुरुष के सान्निध्य में आती है तो उस साम्यावस्था में विकार उत्पन्न होते हैं जिसे गुण-क्षोभ कहा जाता है। संसार के सभी जड़ पदार्थ प्रकृति से उत्पन्न होते हैं पर प्रकृति स्वयं किसी से उत्पन्न नहीं होती। ठीक इसके विपरीत पुरुष न किसी पदार्थ को उत्पन्न करता है और न स्वयं वह किसी अन्य पदार्थ से उत्पन्न है । पुरुष अपरिणामी, अखण्ड, चेतना या चैतन्य मात्र है । बन्ध और मोक्ष ये दोनों वस्तुत: प्रकृति की अवस्था हैं । इन अवस्थाओं का पुरुष में आरोप या उपचार किया जाता है । जैस अनन्ताकाश में उड़ान भरते हुए पक्षी का प्रतिबिम्ब निर्मल जल में गिरता है, जल में जो दिखायी देता है, वह केवल प्रतिबिम्ब है, वैसे ही प्रकृति के बंध और मोक्ष पुरुष में प्रतिबिम्बित होते हैं ।
1 स्याद्वाद मंजरी, पृष्ठ ६३ । ५ 'वरं वृन्दावने रम्ये क्रोष्टुत्वमभिवाञ्छितं स्याद्वाद मंजरी में उद्धत पृष्ठ ६३ । s भारतीय दर्शन में मोक्ष चिन्तन : एक तुलनात्मक अध्ययन, डॉ० अशोक कुमार
लाड मांख्यकारिका ६२ ।
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