________________
५८ | चितन के विविध आयाम [ खण्ड २ ]
मुझने थिरता कर दियो हे राजुल, वचन-अंकुश
गज
जेम ॥
महारानी देवकी के चरित्रांकन में कवि ने वात्सल्य रस के संयोग के चित्र अत्यन्त तन्मयता के साथ अंकित किये हैं। महारानी देवकी के छहों पुत्र देवता के उपक्रम से मृत घोषित हो जाते हैं । श्री कृष्ण का लालन-पालन भी वह नहीं कर पाई जब उसे भगवान् नेमिनाथ के द्वारा यह सूचना मिलती है कि ये छहों मुनि तुम्हारे ही पुत्र हैं, तो उसका मातृत्व बरसाती नदी की तरह उमड पडता है । वह इन छहों मुनिवरों के पास जाती है । देखिए कवि श्री जयमल्ल जी के शब्दों में संयोग वात्सल्य का सफल चित्रण --
तडाक से तूटी कस कंचू तणी रे,
थण रे तो छूटी दूधाधार रे ।
हिवडा माहे हर्ष मावे नहीं रे,
प्रस्तुत चरित्र में वियोग वात्सल्य का वर्णन भी कम सुन्दर नहीं है। माता देवकी के हृदय की थाह वही माता पा सकती है जिसने सात पुत्रों को पैदा करके भी मातृत्व का सुख नहीं लिया । उसके हृदय में शल्य की तरह यह बात चुभ रही है कि उसने अपने प्यारे लालों को हाथ पकडकर चलाया नहीं, रोते बिलखते हुओं को - बहलाया नहीं | वह अपने प्यारे पुत्र श्री कृष्ण से कहती है
हूं तुज आगल सूं कहूँ कन्हैया, बीतक दुख री बात रे, गिरधारी लाल । दुखणी जग में छे घणी कन्हैया,
पिण घणी दुखणी थारी मात रे.. हालरियो देवा तणी, कन्हैया,
मांय रे ॥
म्हारे हंस रही मन ओडणियो पहराव्यो नहीं,
कन्हैया,
माथ रे
टोपी न दीधी काजल पिण सार्यो नहीं, कन्हैया, फदिया न दीघा हाथ रे
11
सच तो यह है महाकवि सूरदास जो वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं वे भी इस प्रकार का चित्र प्रस्तुत नहीं कर सके हैं ।
भगवान् नेमिनाथ के पावन प्रवचन को श्रवण कर गजसुकुमाल संयम के कंटकाकीर्ण महामार्ग पर बढ़ना चाहते हैं। माता देवकी ने ज्यों की यह बात सुनी -त्योंही वह मूच्छित होकर जमीन पर दुलक पड़ती हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org