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जैन शासन - प्रभाविका अमर साधिकाएँ | ५३
कुमारी और अपने पुत्र धन्नालाल की उत्कृष्ट वैराग्य भावना देख कर दीक्षा की अनुमति प्रदान की थी । पुत्री ने वि० सं० १९९४ (सन् १९३७) में माघ शुक्ला १३ को सद्गुरुणीजी श्री सोहनकुँवर जी म० के पास दीक्षा ग्रहण की थी और संस्कृत, प्राकृत, न्याय और आव्य का उच्चतम अध्ययन किया । क्वीन्स कॉलेजबनारस की व्याकरण, काव्य, मध्यमा, साहित्यरत्न (प्रयाग) तथा न्याय काव्यतीर्थ आदि परीक्षायें समुत्तीर्ण कीं । और धन्नालाल ने उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म० के पास दीक्षा ग्रहण की और श्रमण जीवन का नाम 'देवेन्द्रमुनि' रखा गया। आपकी चार शिष्याएँ हुई - १. महासती श्रीमतीजी २. महासती प्रेमकुंवरजी ३. महासती चन्द्रकुंवरजी और ४. महासती बालब्रह्मचारिणी हर्ष प्रभाजी |
जीवन की सांध्य वेला तक धर्म की अखण्ड ज्योति जगाती हुई राजस्थान,
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मध्यभारत में आपका विचरण रहा । आपने अपने त्याग - वैराग्य से छलछलाते हुए प्रवचनों से व्याख्यान वाचस्पति गणेश मुनि जी "शास्त्री ", रमेश मुनि जी "शास्त्री", राजेन्द्र मुनि जी " शास्त्री" और दिनेश मुनि जी "विशारद" को त्याग मार्ग की ओर उत्प्रेरित किया । दि० २७ जनवरी १९८२ को आपका 'खैरोदा' ग्राम में समाधि पूर्वक संथारे के साथ स्वर्गवास हुआ ।
आपका भौतिक शरीर भले ही वर्तमान में विद्यमान नहीं है पर आप यशः - शरीर से आज भी जीवित हैं और भविष्य में सदा जीवित रहेंगीं । काल की क्रूर छाया भी उनके तेजस्वी व्यक्तित्व एवं कृतित्व को धूमिल नहीं बना सकती ।
इस प्रकार प्रस्तुत परम्परा वर्तमान में चल रही है । इस परम्परा में अनेक परमविदुषी साध्वियाँ है ।
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परमविदुषी महासती सद्दाजी की एक शिष्या फत्तूजी हुई, जिनके सम्बन्ध में हम पूर्व सूचित कर चुके हैं । महासती फत्तूजी का विहार क्षेत्र मुख्य रूप से मारवाड़ रहा । उनकी अनेक शिष्याएं हुईं और उन शिष्याओं की परम्पराओं में भी अनेक शिष्याएँ समय-समय पर हुई मारवाड़ के उस प्रान्त में जहां स्त्रीशिक्षा का पूर्ण • अभाव था, वहाँ पर उन साध्वियों ने त्याग तप के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी प्रगति की। क्योंकि कई साध्वियों के हाथों की लिखी हुई प्रतियां प्राप्त होती हैं, जो उनकी शिक्षा-योग्यता का श्रेष्ठ उदाहरण कहा जा सकता है । पर परिताप है कि उनके सम्बन्ध में प्रयास करने पर भी मुझे व्यवस्थित सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी । इस लिए अनुक्रम में उनके सम्बन्ध में लिखना बहुत ही कठिन है । जितनी भी सामग्री प्राप्त हो सकी है, उसी के आधार से मैं यहाँ लिख रहा हूँ । यदि राजस्थान के अमर जैन ज्ञान भण्डार में व्यवस्थित सामग्री मिल गयी तो बाद में इस सम्बन्ध में परिष्कार भी किया जा सकेगा ।
फत्तू जी की शिष्या - परम्परा में महासती आनन्दकुंवरजी एक तेजस्वी साध्वी
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