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________________ जैन शासन-प्रभाविका अमर साधिकाएँ । ४३ बनी–महासती देवकुवरजी (जन्म कर्णपुर के पोरवाड परिवार में तथा विवाह उदयपुर पोरवाड परिवार), महासती प्यारकुंवरजी (जन्म-बाठेडा, ससुरालडबोक), महासती पदमकुवरजी-इनका जन्म उदयपुर के सन्निकट थामला के सियार परिवार में हुआ और डबोक झगड़ावत परिवार में पाणिग्रहण हुआ। स्थविरा विदुषी महासती सौभाग्य कुंवरजी और सेवामूर्ति महासती चतुरकुवरजी । इनमें महासती पदमकुवरजी की महासती कैलासकुंवरजी शिष्या हुईं। आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी । आपके पिपा का नाम हीरालालजी और माता का नाम इंदिराबाई था। आपका गणेशीलालजी से पाणिग्रहण हुआ था । सं० १९९३ फाल्गुन शुक्ला दसमी के दिन देलवाड़ा में आपने दीक्षा ग्रहण की । आपको चरित्र बाँचने की शैली बहुत ही सुन्दर थी, आपकी सेवाभाबना प्रशंसनीय थी। सं० २०३२ में आपका अजमेर में संथारा सहित स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम महासती रतनकुवरजी है। महासती हुल्लासकुवरजी की चतुर्थ शिष्या सौभाग्यकुंवर जी हैं। आपकी जन्मस्थली उदयपुर, पिता का नाम मोडीलालजी खोखावत और माता का नाम रूपाबाई था । आपश्री वर्तमान में विद्यमान हैं । आपका स्वभाव बहुत ही मधुर है । आपकी शिष्या हुई महासती मोहनकुंवरजी जिनका जन्म दरीबा (मेवाड़) में हुआ और उनका पाणिग्रहण दबोक ग्राम में हुआ। वि० सं० २००६ में आपने दीक्षा ग्रहण की और सं० २०३१ में आपका स्वर्गवास उदयपुर में हुआ । __ महासती हुल्लासकुवरजी की पाँचवीं शिष्या महासती चतुरकुंवरजी हैं जो बहुत ही सेवापरायण साध्वीरत्न हैं। . (४) महासती रायबरजी की चतुर्थ शिष्या हकमकुंवरजी थीं। उनकी सात शिष्याएं हुई-महासती भूरकुंवरजी-आपका जन्म उदयपुर राज्य के कविता ग्राम में हुआ। आपको थोकड़े साहित्य का बहुत ही अच्छा परिज्ञान था । पचहत्तर वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी एक शिष्या हुई जिनका नाम महासती प्रताप'वरजी था, जो प्रकृति से भद्र थीं । लखावली के भण्डारी के परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ था और लगभग सत्तर वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ। महासती हुकुमकुंवरजी की दूसरी शिष्या रूपकुंवरजी थीं। आपकी जन्मस्थली देवास (मेवाड़) की थी। लोढा परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ । आपने महासती जी के पास दीक्षा ग्रहण की । वर्षों तक संयम पालन कर अन्त में आपका उदयपुर में स्वर्गवास हुआ। महासती हुकुमकुवरजी की तृतीय शिष्या बल्लभकुंवरजी थीं। आपका जन्म उदयपुर के बाफना परिवार में हुआ था और आपका पाणिग्रहण उदयपुर के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003180
Book TitleChintan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1982
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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