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४२ / चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २]
सम्पन्न हुआ। आपका गृहस्थाश्रम का नाम जमुनाबाई था। सोलह वर्ष की उम्र में पति का देहान्त होने पर विदुषी महासती आनन्दकुवरजी के उपदेश से सं० १९७६ में दीक्षा ग्रहण की । चौपन वर्ष तक दीक्षा पर्याय का पालन कर सं० २०३० आसोज सुदी पूर्णिमा के दिन आपका यशवन्तगढ़ में स्वर्गवास हुआ । महासती सज्जनकुंवरजी की एक शिष्या हुई जिनका नाम बालब्रह्मचारिणी विदुषी महासती कौशल्याजी है। महासती कौशल्याजी की चार शिष्याएं हैं - महासती विजयवतीजी, महासती हेमवतीजी, महासती दर्शनप्रभाजी और महासती सुदर्शनप्रभाजी ।
महासती लहरकवरजी की दूसरी शिष्या महासती कंचनकुंवर जी का जन्म उदयपुर राज्य के कमोल गांव के दोसी परिवार में हुआ । तेरह वर्ष की वय में आपका विवाह पदराडा में हुआ और चार महीने के पश्चात् ही पति के देहान्त हो जाने से लघुवय में विधवा हो गयीं। महासती श्री लहरकुंवरजी के उपदेश को सुनकर दीक्षा ग्रहण की । आपका नांदेशमा ग्राम में संथारे के साथ स्वर्गवास हुआ । आपकी एक शिष्या है जिनका नाम महासती वल्लभकुंवरजी हैं जो बहुत ही सेवापरायण है।
पूर्व पंक्तियों में हम बता चुके हैं कि महासती सद्दाजी की रत्नाजी, रंभाजी, नवलाजी की पाँच शिष्याएँ हई, उनमें से चार शिष्याओं के परिवार का परिचय दिया जा चुका है। उनकी पाँचवी शिष्या अमृताजी हुई। उनको परम्परा में महासती श्री रायकुवरजी हुई जो महान प्रतिभासम्पन्न थीं। आपकी जन्मस्थली उदयपुर के सन्निकट कविता ग्राम में थी। आप ओसवाल तलेसरा वंश की थीं। उनके अन्य जीवनवृत्त के सम्बन्ध में मुझे विशेष सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकी है । पर यह सत्य है कि वे एक प्रतिभासम्पन्न साध्वी थीं। जिनके पवित्र उपदेशों से प्रभावित होकर अनेक शिष्याएँ बनीं । उनमें से दस शिष्याओं के नाम उपलब्ध होते हैं । अन्य शिष्याओं के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
(१) महासती सूरजकंवरजी- इनकी जन्मस्थली उदयपुर थी और पाणिग्रहण साडोल (मेवाड़) के हनोत परिवार में हुआ था। महासती जी के उपदेश से प्रभावित होकर आपने साधनामार्ग स्वीकार किया। आपकी कितनी शिष्याएं हुईं, यह ज्ञात नहीं।
(२) महासती फूलकुंवरजी-आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी । आँचालिया परिवार में आपका पाणिग्रहण हुआ । महासतीजी के पावन प्रवचनों से प्रभावित होकर श्रमणीधर्म स्वीकार किया। आपकी भी कितनी शिष्याएँ हुई, यह ज्ञात नहीं ।
(३) महासती हुल्लासकुंवरजी-आपकी जन्मस्थली भी उदयपुर थी । आपका पाणिग्रहण भी उदयपुर के हरखावत परिवार में हुआ था । आपने भी महासतीजी के उपदेश से प्रभावित होकर संयम धर्म ग्रहण किया था। महासती हुल्लासकुवरजी बहुत विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं। आपके उपदेश से प्रभावित होकर पाँच शिष्याएँ
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