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________________ भगवान अरिष्टनेमि की ऐतिहासिकता ६७ पी० सी० दीवान ने लिखा है जैन ग्रन्थों के अनुसार नेमिनाथ और पार्श्वनाथ के बीच में ८४००० वर्ष का अन्तर है । हिन्दू पुराणों में इस बात का निर्देश नहीं है कि वसुदेव के समुद्रविजय बड़े भाई थे और उनके अरिष्टनेमि नामक कोई पुत्र था । प्रथम कारण के सम्बन्ध में दीवान का कहना है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि हमारे वर्तमान ज्ञान के लिए यह संभव नहीं है कि जैन ग्रन्थकारों के द्वारा एक तीर्थंकर से दूसरे तीर्थंकर के बीच में सुदीर्घकाल का अन्तराल कहने में उनका क्या अभिप्राय है, इसका विश्लेषण कर सकें; किन्तु केवल इसीकारण से जैनग्रन्थों में वर्णित अरिष्टनेमि के जीवनवृत्तान्त को, जो अतिप्राचीन प्राकृत ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है, दृष्टि से ओझल कर देना युक्तियुक्त नहीं है । दूसरे कारण का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि भागवत सम्प्रदाय के ग्रन्थकारों ने अपने परम्परागत ज्ञान का उतना ही उपयोग किया है जितना श्री कृष्ण को परमात्मा सिद्ध करने के लिए आवश्यक था । जैनग्रन्थों में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तथ्य हैं जो भागवत साहित्य में उपलब्ध नहीं हैं । २२ कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में लिखा है 'मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं । उनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे । नेमिनाथ केन्डीविया निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे | २३ प्रसिद्ध कोषकार डाक्टर नगेन्द्रनाथ वसु, पुरातत्त्ववेत्ता डाक्टर फुहर्र, प्रोफेसर बारनेट, मिस्टर करवा, डाक्टर हरिदत्त, डाक्टर मंखली जण्णभयालि बाहुय महु सोरियाण विदुर्विपू । वरिसकण्हे आरिय उक्कलवादी य तरुणे य ॥ -- इसि भासियाई पढमा संगहणी गा० २-३ २२. जैन साहित्य का इतिहास - पूर्व पीठिका - ले० पं० कैलाशचन्द्रजी पृ० १७०-१७१ २३. अन्नल्स आफ दी भण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट -पत्रिका, जिल्द २३ पृ० १२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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