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________________ ३७ अरिष्टनेमिः पूर्वभव (४) माहेन्द्रकल्प में : __ आयु पूर्ण करके चित्रगति. रत्नवती और उनके दोनों भाई माहेन्द्रकल्प में देव बने ! चारों जीव वहां आनन्द के सागर पर तैरने लगे। (५) अपराजित और प्रीतिमती : पूर्व विदेह के पद्मनामक विजय में सिंहपुर नामक एक नगर था। वहाँ का राजा हरिनन्दी था। उसकी प्रियदर्शना पट्टरानी थी।" चित्रगति का जीव माहेन्द्र स्वर्ग की आयु पूर्ण कर रानी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। २ जन्म लेने पर पुत्र का नाम 'अपराजित' रखा।"3 आगे चलकर विमलबोध नामक मंत्री पुत्र के साथ उसका हार्दिक स्नेह-सम्बन्ध हो गया। दोनों मित्र किसी समय घोडे पर बैठकर जंगल में घूमने के लिए गये । उलटी रेस (शिक्षा) के घोड़े होने से वे उनको रोकने के लिए ज्यों-ज्यों लगाम खींचते त्यों-त्यों वे घोड़े पवनवेग की तरह द्र तगति से दौड़ते । वे दोनों भयानक जंगल में पहुँच गये। उन्होंने ज्यों हो रत्नवत्या कनिष्ठाभ्यां ताभ्यां च स समाददे । व्रतं दमधराचार्यपाा चित्रगतिस्ततः । चिरं तप्त्वा विधायान्ते पादपोपगमनं च सः । -त्रिषष्टि० ८।१।२५७, २५६ ५०. विपद्य कल्पे माहेन्द्र सुरोऽभूत्परमद्धिकः । रत्नवत्यपि तत्र व कनिष्ठौ तौ च बान्धवौ ।। रत्नवत्यपि तत्र व कनिष्ठौ तौ च बान्धवौ । संजज्ञिरे सुरवराः प्रीतिभाजः परस्परम् ॥ -त्रिषष्टि० ८।१।२५६-२६० ५१. त्रिषष्टि० ८।१।२६१-२६३ ५२. जीवश्चित्रगतेः सोऽथ च्युत्वा माहेन्द्रकल्पतः । कुक्षाववातरत्तस्या महास्वप्नोपसूचितः ॥ --त्रिषष्टि० ८।१।२६४ ५३. अपराजित इत्याख्यां तस्य चक्रे महीपतिः । ---त्रिषष्टि० ८।१।२६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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