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________________ १६ भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण आया है । पाणिनि, कात्यायन और पतञ्जलि जैसे वैयाकरणों के ग्रन्थों में 'वासुदेवक' एवं " जघान कंस' किल वासुदेव:' आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है । चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में मकदूनिया के राजदूत मैगस्थनीज ने सात्वतों और वासुदेव कृष्ण का स्पष्ट उल्लेख किया है। डाँ. रामकुमार वर्मा कृष्ण को वासुदेव का पर्यायवाची मानते 13° आर. जी. भण्डारकर ने अपने वैष्णविज्म और शैविज्म ग्रन्थ में वासुदेव सम्बन्धी शिलालेखो का वर्णन किया है । 39 इस प्रकार हम देखते हैं कि वैदिक परम्परा में वासुदेव अनेक नहीं, अपितु एक ही हुए हैं । श्री कृष्ण को ही वहाँ वासुदेव कहा गया है । किन्तु जैन परम्परा में वासुदेव नौ हुए हैं। श्री कृष्ण उन सभी में अन्तिम वासुदेव थे । श्री कृष्ण को जैन और वैदिक दोनों ही परम्पराओं ने वासुदेव माना है । हम अगले अध्यायों में श्री कृष्ण के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जैन और वैदिक दृष्टि से चिन्तन करेंगे | * ३०. हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास - डा० रामकुमार वर्मा पृ० ४७२ ३१. वैष्णविज्म शविज्म - भण्डारकर पृ० ४५ ३२. वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनञ्जय । - गीता १०।३७ ३३. नवमो वासुदेवोऽयमिति देवा जगुस्तदा --- हरिवंशपुराण ५५।६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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