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तीर्थङ्कर और वासुदेव को पृथक्-पृथक स्वीकार किया है। उनकी यह धारणा है कि प्रारंभ में ये दो पृथक अस्तित्व वाले देवता थे जो बाद में एक हो गये। इस मत को परवर्ती विद्वानों ने स्वीकार नहीं किया है। महाभारत में जिस श्री कृष्ण का वर्णन है वह एक ही है, उसके नाम चाहे अनेक हों। गीतारहस्य में तिलक ने स्पष्ट लिखा है-'हमारा मत यह है कि कृष्ण चार पाँच नहीं हए हैं, वे केवल एक ही ऐतिहासिक पुरुष थे ।२७ हेमचन्द्र रायचौधरी ने अपने वैष्णवधर्म सम्बन्धी ग्रन्थ में कृष्ण और वासदेव का पार्थक्य स्वीकार नहीं किया है। अपने मत की पुष्टि में उन्होंने कीथ के लेख का उद्धरण दिया है ।२८ ___ वासुदेव और श्री कृष्ण का सामंजस्य घटित करने के लिए यह भी कहा जाता है कि वासुदेव मुख्य नाम था और 'कृष्ण' गोत्र-सूचक नाम के रूप में प्रयुक्त होता था। 'घटजातक' में वासुदेव के साथ 'कृष्ण या कान्ह एक विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है, किन्तु उससे भिन्न व्यक्तित्व सूचित नहीं होता । दीघनिकाय के अनुसार वासुदेव का ही दूसरा नाम कृष्ण था ।२९ महाभाष्यकार पतंजलि ने एक स्थान पर लिखा है कि 'कृष्ण ने कंस को मारा और दूसरे स्थान पर लिखा है कि वासुदेव ने कंस को मारा।' इस कथन से यह ज्ञात होता है कि वासुदेव और श्रीकृष्ण एक ही हैं। महाभाष्य में वासुदेव शब्द चार बार और कृष्ण शब्द एक बार
२७. गीतारहस्य अथवा कर्मयोग, पृ० ५४८ (पाद टिप्पणी सहित)
श्री बालगंगाधर तिलक 75. "But it is impossible to accept the Statement that
Krishna whom epic tradition ideutifies with vasudeo was originally an altogether diffesent individual. On the coutrary, all available evidence, Hindu, Buddhist, and Greek, points to the Correctness of the identity, and we agree with keith when he says that "the separation of Vasudeva and krishna as two eutities it is impossible to justify."
-H. Ray chaudhuri, early history
of the Vaishanav Seet., P. 36 २६. देखिए हिन्दी साहित्य में राधाः पृ० ३१ से उध्धृत
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