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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
पुराण में मथरा का महत्त्व सर्वोपरि मानते हुए कहा गया है कि यद्यपि काशी आदि सभी पुरियां मोक्षदायिनी हैं, तथापि मथुरापुरी धन्य है। यह पूरी देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। १७४ इसी का समर्थन गर्ग संहिता' में करते हुए बताया है कि पुरियों की रानी कृष्णपूरी मथरा ब्रजेश्वरी है, तीर्थेश्वरी है, यज्ञ तपोनिधियों की ईश्वरी है, यह मोक्षप्रदायिनी धर्मपुरी मथुरा नमस्कार योग्य है । १७५ यमुना नदी :
भारतवर्ष की प्राचीन पवित्र नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की गई है।
पद्मपुराण में यमुना के आध्यात्मिक स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए कहा है जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्षणों से सच्चिदानन्द स्वरूप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्मरूप से गायन किया है, वही परमतत्त्व साक्षात् यमुना है । १७६ मथुरा माहात्म्य में यमुना को साक्षात् चिदानन्दमयी लिखा है ।१४
यमुना का उद्गम हिमालय के हिमाच्छादित शृग बंदरपुच्छ (ऊँचाई २०, ७३१ फीट) से ८ मील उत्तर-पश्चिम में स्थित कलिंद पर्वत है । इसी के नाम पर इसे कलिंदजा अथवा कालिंदी कहा जाता है। अपने उद्गम से कई मील तक विशाल हिमागारों और हिममंडित कंदराओं में अप्रकट रूप से बहती हुई तथा पहाड़ी ढलानों पर से बड़ी तीव्रतापूर्वक उतरती हुई इसकी धारा यमुनोत्तरी पर्वत (ऊँचाई १०, ८४६ फीट) से प्रकट होती है । १७८
१७४. काश्यात्यो यद्यपि सन्ति पुर्यस्तासांहु मध्ये मथुरैव धन्या। तां पुरी प्राप्य मथुरां मदीया सुर दुर्लभाम् ।।
__--पद्मपुराण ७३।४४-४५ १७५. काश्यादि सर्गायदिसंति लोके ता सा तु मध्ये मथुरैव धन्या ।
पूरीश्वरी कृष्णपुरी ब्रजेश्वरी तीर्थेश्वरी यज्ञतपोनिधीश्वरीम् । मोक्षप्रदीधर्मधुरंधरां परां मधोर्वने श्री मथुरां नमाम्यहम् ।।
-गर्ग संहिता ३३-३४ १७६. पद्मपुराण, पातालखण्ड, मरीचि सर्ग
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