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भौगोलिक परिचय : परिशिष्ट १
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बौद्ध परम्परा के अनुसार यह जम्बूद्वीप दस हजार योजन बड़ा है।१६ इसमें चार हजार योजन जल से भरा होने के कारण समुद्र कहा जाता है और तीन हजार योजन में मानव रहते हैं। शेष तीन हजार योजन में चौरासी हजार कूटों (चोटियों) से सुशोभित, चारों ओर बहती ५०० नदियों से विचित्र, ५०० योजन ऊंचा हिमवान पर्वत है।
उल्लिखित वर्णन से स्पष्ट है कि जिसे हम भारत के नाम से जानते हैं वही बौद्धों में जम्बूद्वीप के नाम से विख्यात है। १८ भरतक्षेत्र :
जम्बूद्वीप का दक्षिणी छोर का भूखण्ड भरतक्षेत्र के नाम से विश्रुत है। यह अर्धचन्द्राकार है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार इसके पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवण समुद्र है। १९ उत्तर दिशा में चूलहिमवंत पर्वत है।२० उत्तर से दक्षिण तक भरतक्षत्र की लम्बाई ५२६ योजन ६ कला है और पूर्व से पश्चिम की लम्बाई १४४७१ योजन और कुछ कम ६ कला है। इसका क्षेत्रफल ५३,८०,६८१ योजन, १७ कला और १७ विकला है ।२२
१६. वहीं० खण्ड १, पृ० ६४१ १७ वहीं० खण्ड २, पृ० १३२५-१३२६ १८. (क) इण्डिया ऐज डेस्क्राइब्ड इन अर्ली टेक्सट्स आव बुद्धिज्म एंड
जैनिज्म पृ० १, विमलचरण लॉ लिखित, (ख) जातक प्रथम खण्ड, १० २८२, ईशानचन्द्र घोष (ग) भारतीय इतिहास की रूपरेखा भा० १, पृ० ४,
लेखक-जयचन्द्र विद्यालंकार (घ) पाली इग्लिश डिक्शनरी पृ० ११२, टी० डब्ल्यू रीस डेविस
तथा विलियम स्टेड (ङ) सुत्तनिपात की भूमिका-धर्मरक्षित पृ० १
(च) जातक-मानचित्र · भदन्त आनन्द कौशल्यायन १६. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, सटीक, वक्षस्कार १, सूत्र १०, पृ० ६५।२ २०. वहीं० १।१०।६५-२ २३
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