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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
लवणसमुद्र है और लवणसमुद्र से दुगुना विस्तृत धातकीखण्ड है । इस प्रकार द्वीप और समुद्र एक दूसरे से दूने होते चले गये हैं । ४
इसमें शाश्वत जम्बूवृक्ष होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा । जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु नामक पर्वत है जो एक लाख योजन ऊंचा है । "
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जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन है ।" इसकी परिधि ३,१६,२२७ योजन, ३ कोस १२८ धनुष, १३३ अंगुल, ५ यव और १ यूका है । इसका क्ष ेत्रफल ७, ६०, ५६, ६४, १५० योजन, १ ।। कोस, १५ धनुष और २ ।। हाथ है । 20
श्रीमद्भागवत में सात द्वीपों का वर्णन है । उसमें जम्बूद्वीप प्रथम है।
बौद्ध दृष्टि से चार महाद्वीप हैं, उन चारों के केन्द्र में सुमेरु है । सुमेरु के पूर्व में पु०व विदेह १२ पश्चिम में अपरगोयान, अथवा अपर गोदान १३ उत्तर में उत्तर कुरु १४ और दक्षिण में जम्बूद्वीप है । १५
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४. वहीं ० २८ ५. वहीं ० १५।३१-३२
६. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार ४ सू० १०३, पत्र ३५-३६० ७ वहीं ० ४।११३, पत्र ३५६।२
८. ( क ) समवायाङ्ग सूत्र १२४, पत्र २०७२, प्र० जैन धर्म प्रचारक
सभा भावनगर
(ख) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार १।१०।६७
(ग) हरिवंशपुराण ५।४-५
६. ( क ) लोक प्रकाश १५।३४-३५ ( ख ) हरिवंशपुराण ५।४-५
१०. ( क ) लोक प्रकाश १५३३६-३७
(ख) हरिवंशपुराण ५।६-७
११. श्रीमद्भागवत प्र० खण्ड, स्कंघ ५, अ० १, पृ० ५४६ १२. डिक्सनेरी ऑव पाली प्रामर नेम्स, खण्ड २, पृ० २३६ १३. वहीं ० खण्ड १, पृ० ११७
१४. वहीं० खण्ड १, पृ० ३५५
१५. वहीं० खण्ड १, पृ० ६४१
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