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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
कवियों ने उनका अन्धानुकरण किया है । विषयलोलुपता के कारण मनुष्य कितना नीचे गिर जाता है और किस प्रकार अपने आराध्य देवों के भी पावन चरित को निम्न स्तर पर ला सकता है, यह उन वर्णनों से स्पष्ट हो जाता है।
अपनी इसी धारणा के कारण हमने प्रस्तुत ग्रन्थ में कृष्णचरित का निदर्शन कराते हुए उक्त पुराणों के असत् अंशों को स्थान नहीं दिया है। उनसे कृष्ण के उदात्त जीवन की महिमा बढ़ती नहीं, कम होती है। इस सम्बन्ध में जिन प्रबुद्ध पाठकों को विशेष जिज्ञासा हो, वे ब्रह्मवैवर्तपुराण (कृष्ण जन्म, खंड ४ अध्याय २८), स्कंदपुराण (स्कंद १०, अ० २६-२६), विष्णु पुराण (अंश ५) आदि स्वयं देख सकते हैं।
जैन-साहित्य में कृष्ण को लांछित करने वाले ऐसे उल्लेख नहीं पाए जाते। वे अपने यूग के एक विशिष्ट व्यक्ति थे। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व बड़ा विलक्षण वैविध्यपूर्ण तथा अलौकिक था। उनकी वीरता, नीतिज्ञता एवं बुद्धिमत्ता से सभी प्रभावित थे। वे प्रभावशाली जननेता, अपूर्व धार्मिक विद्वान् और महान दार्शनिक तत्त्ववेत्ता थे। उन्होंने भारतीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्ति कर अपने कुशल नेतृत्व का परिचय दिया और एक अत्यन्त समृद्धिशाली सभ्यता तथा समुन्नत संस्कृति का प्रादुर्भाव किया।
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