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________________ उपसंहार ३४५ बहुत ऊपर, उठी हुई थी। संसार के भोग-विलास, जो मानव-मन को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं और जिनसे छूटकारा पाने के लिए कठोर आत्मसंयम और आत्मदमन का आश्रय लेना पड़ता है, फिर भी पूरी तरह जीते नहीं जाते, वे भगवान् अरिष्टनेमि की आत्मा को आकृष्ट नहीं कर सके थे। इन्द्रिय विषयों का सेवन और उसी में जीवन को समाप्त कर देना उन्हें निरी मूढ़ता प्रतीत होती थी। नारी-शक्ति से वे कभी- पराजित नहीं हुए। ललनाओं का लास्य, उनके हाव-भाव और विलास उनके विरक्तिमय अन्तस्तल को स्पर्श तक नहीं कर सके। श्रीकृष्ण की रानियां अपने देवर नेमिनाथ के चित्त में नारी के प्रति आकर्षण का भाव उत्पन्न करने के लिए अनेक प्रकार की शृगारमय चेष्टाएँ करती हैं। उन्हें देखकर और संसारी जीवों की मोहदशा का विचार करके नेमिनाथ के मुख पर हल्का-सा स्मित उत्पन्न होता है। रानियां उसे देखकर अपने प्रयास की सफलता का अनुमान करती हैं ! नेमिनाथ का हृदय अणुमात्र भी विचलित नहीं होता। भगवान् अरिष्टनेमि के युग का गम्भीरतापूर्वक पर्यालोचन करने पर छिपा नहीं रहता कि उस समय से क्षत्रियों में मांसभक्षण और मदिरापान की प्रवृत्ति पर्याप्त मात्रा में बढ़ गई थी। उनके विवाह के अवसर पर पशुओं का एकत्र किया जाना और मदिरोन्मत्त यदुकुमारों की करतूत के फलस्वरूप द्वारिका का दहन होना इस तथ्य को उजागर करते हैं । हिंसा की इस पैशाचिक प्रवृत्ति की ओर जनसामान्य का ध्यान आकर्षित करने के लिए और क्षत्रियों को मांसभक्षण से विरत करने के लिए श्री अरिष्टनेमि ने जो पद्धति अपनाई, वह अद्भुत और असाधारण थी। विवाह किये बिना लौट जाना मानो समग्र क्षत्रिय जाति के पापों का प्रायश्चित्त था। उसका बिजली का सा प्रभाव दूर-दूर तक और बहुत गहरा हुआ ! एक सुप्रतिष्ठित महान् राजकुमार का दूल्हा बन कर जाना और ऐन मौके पर विवाह किए बिना लौट जाना, क्या साधारण घटना थी ? भगवान् अरिष्टनेमि का वह बड़े से बड़ा त्याग था और उस त्याग ने एक बार सारे समाज को पूरी तरह झकझोर दिया। समाज के हित के लिए आत्मबलिदान का ऐसा दूसरा कोई उदाहरण मिलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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