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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण (६) वृन्दावन से मथुरा को प्रस्थान और कंस का वध-आयु १२ वर्ष सं० ३११६ वि० पूर्व
फाल्गुन शुक्ल १४ (७) मथुरा में यज्ञोपवीत और
सांदीपनि के गुरुकुल को प्रस्थान
-आयु १२ ॥ ॥ ३११६ ॥ ॥ जरासंध का मथुरा पर आक्रमण __ -आयु १३ ॥ ॥ ३११५ , ,
(ख) सूरदास ने इन्हीं तिथि-वार आदि का उल्लेख करते हुए
ग्नहों का फलादेश इस प्रकार लिखा है(नन्द जू) आदि जोतिषी तुम्हरे घर कौ, पुत्र-जन्म सुनि आयो। लगन सोधि सब जोतिष गनि कै, चाहत तुमहिं सुनायौ । संवत सरस विभावन, भादौं, आठ तिथि बुधवार । कृष्न पच्छ, रोहिनी, अर्ध निसि, हर्षन जोग उदार ।। वृष है लग्न उच्च के निसिपति, तनहिं बहुत सुख पैहैं ! चौथे सिंह रासि के दिनकर, जीति सकल महि लैहैं ।। पंचऐ बुध कन्या को जौ है पुत्रनि बहुत बढ़े हैं। ठछऐ सुक्र तुला के सनि जुत, सत्रु रहन नहिं पैहैं । ऊँच नीच जुवती बहु करि हैं सतऐ राहु परे हैं।
-सूरसागर (ना० प्र० सभा०) पद सं० ७०४ (ग) कल्याण के कृष्णांक पृ० ४७८ पर श्री लज्जाराम मेहता के
लेख में सूरदास के एक अन्य पद के आधार पर जन्मकुंडली
भी है। (घ) श्रीकृष्ण की जन्मकुंडली पद्माकरकवि के पौत्र दतिया
निवासी श्री गदाधर भट्टकृत है, जो 'देशबंधु' वर्ष २, अंक १-२ पृ० ६४ में प्रकाशित हुई है। तीसरी जन्मकुण्डली कर्णाटक निवासी श्री बी० एच० बडेर कृत है, जो कल्याण के
कृष्णाङ्क में प्रकाशित है। (ङ) विक्टोरिया कालेज, ग्वालियर के प्रो० आप्टे ने केतकी मत
से गणना कर उक्त तिथि बार आदि की भी पुष्टि की है ।
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