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महाभारत का युद्ध
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जानते हैं ।२६ आप कुरुकुल के प्रधान नेता और शासक हैं । आपके रहते आपसे छिपाकर और आपको जताकर भी कौरव लोग असत्य और कपट का व्यवहार कर रहे हैं। आपके पुत्र दुर्योधन आदि अत्यन्त अशिष्ट हैं। वे राज्य-लोभ के वश होकर प्राचीन मर्यादा को तोड़ते हैं-धर्म और अर्थ पर दृष्टि न रखकर पाण्डवों के साथ क्रूरता और बेईमानी का वर्ताव कर रहे हैं। इसी कारण इस समय कुरुकुल के ऊपर विपत्ति के बादल मंडरा रहे हैं। यदि आप इस परिस्थित को न संभालेंगे तो निश्चय ही युद्ध की अग्नि में पृथ्वी के असंख्य मनुष्यों का सर्वनाश हो जायेगा । हे राजेन्द्र ! आप चाहें तो सहज ही यह आपत्ति टल सकती है ।२७
हे राजेन्द्र ! आपकी आज्ञा मानना आपके पुत्रों का कर्तव्य है । आपकी आज्ञा में चलने से उनका परम कल्याण होगा ।२८
हे नरराज ! विशेष उद्योग व यत्न करके भी आप पाण्डवों को हरा नहीं सकते, किन्तु पाण्डव यदि आपके रक्षक हो जायेंगे तो देवगण सहित भी आपका सामना न कर सकेंगे। राजाओं की तो बात ही नहीं ।२९
हे राजेन्द्र ! संग्राम का फल केवल महाक्षय है। देखिए, कौरवों और पाण्डवों में से यदि कोई पक्ष नष्ट हुआ तो आपकी ही हानि होगी। आपको शोक भी होगा ।30 समर में पाण्डवों और कौरवों का विनाश होने से क्या आपकी प्रशंसा होगी ? पाण्डव मरें या कौरव मरें तो क्या आपको सुख मिलेगा ?3१ पाँचों पाण्डव शूर युद्धनिपुण और आपके आत्मीय हैं । इसलिए आप इस होने वाले अनर्थ से दोनों पक्षों की रक्षा कीजिए । ऐसा उपाय कीजिए जिससे शूर और रथी पाण्डव और कौरव एक दूसरे के हाथ से मरते हुए न दीख पड़ें।३२ और पाण्डवों के प्रति आपका जैसा सद्भाव पहले था वैसा ही फिर
२६. वहीं० श्लोक ४ २८. वहीं० श्लोक १४ ३०. वहीं० श्लोक २८ ३२. वहीं० श्लोक ३१
२७. वहीं० श्लोक ८-१२ २६. वहीं० श्लोक १८ ३१. वहीं० श्लोक २६ ३३. वहीं० श्लोक ३७
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