________________
महाभारत का युद्ध
२६६ मेरे सारथी बनें१५, श्रीकृष्ण ने कहा-मैं इस युद्ध में सारथी बनकर तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूगा । कृष्ण युद्ध के प्रेरक नहीं : ___ उद्योग पर्व के इस प्रकरण से स्पष्ट है कि श्रीकृष्ण की दुर्योधन और अर्जन के प्रति समान दृष्टि थी। न उनका पाण्डवों के प्रति गहरा राग था और न कौरवों के प्रति गहरा द्वष ही। उन्होंने जो विरोध किया था वह राग और द्वष के कारण नहीं, अपितु न्याय और अन्याय के कारण था । वे यों पक्षपात से मुक्त थे।
दूसरी बात, श्रीकृष्ण एक अद्वितीय योद्धा थे। उनके शरीर में अपार बल था किन्तु युद्ध में लोगों को अपार हानि होती है, निरपराध प्राणियों की भी हिंसा होती है, एतदर्थ ही उन्हें युद्ध पसन्द नहीं था। महाभारत का युद्ध न हो, इसके लिए उन्होंने काफी श्रम भी किया था पर जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो सोचा कि अब मुझे एक पक्ष की सहायता करनी पड़ेगी। तब उन्होंने स्वयं हथियार ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा ली। श्रीकृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी भी वीर ने यह आदर्श उपस्थित नहीं किया। भीष्म पितामह जैसी महान विभूति भी ऐसा न कर सकी। तथापि आश्चर्य इस बात का है कि लोग उन्हें महाभारत युद्ध का प्रेरक मानते हैं। वे युद्ध के कराने वाले नहीं, रोकने वाले थे। .. निःशस्त्र श्रीकृष्ण को लेकर उनसे क्या लाभ उठाना । यह प्रश्न वीर अर्जन के सामने उपस्थित हआ। अर्जन ने अपना रथ चलाने का कार्य श्रीकृष्ण को सौंपा। रथ चलाने का कार्य क्षत्रियों की दृष्टि से निम्नकोटि का कार्य था। क्षत्रिय लोग यह कार्य करना अनुचित मानते थे। जब कर्ण ने मद्रराज को अपना सारथी बनने के लिए कहा तब उसने अपना बहुत बड़ा अपमान समझा था किन्तु श्रीकृष्ण ने सोचा-यह कार्य करना श्रेयस्कर है, पर युद्ध करना अनुचित है।
१५. महाभारत, उद्योगपर्व श्लोक ३६-३७ १६. वहीं, श्लोक ३८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org