________________
द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरणं
२८५ 'देवानुप्रिय ! तुमने पाँचों पाण्डवों को निर्वासन की आज्ञा दी है। तुम दक्षिणार्द्ध भरत के स्वामी हो । अतः तुम्ही आज्ञा दो कि पाण्डव किस दिशा-विदिशा में जायें ?'२५ ___ कुन्ती देवी उसी समय हाथी पर आरूढ़ हो द्वारवती नगरी पहुँची। श्रीकृष्ण ने पहले की तरह ही उनका स्वागत किया और आने का कारण पूछा । कुन्ती ने पाण्डुराजा का सन्देश कहा। ___ कृष्ण बोले वासुदेव, बलदेव, चक्रवर्ती प्रभृति उत्तम पुरुष अमोघ वचन होते हैं, अत: पाँचों पाण्डव दक्षिण दिशा के बेलातट पर जाए और वहाँ पाण्डमथुरा नामकी नगरी बसा कर मेरे अदृष्ट सेवक के रूप में रहें।" ऐसा कहकर उन्होंने कुन्ती को आदर के साथ विदा किया।
कुन्ती ने हस्तिनापुर आकर श्रीकृष्ण का आदेश पाण्डुराजा को कहा।
पाण्डुराजा ने पाँचों पाण्डवों को बुलाया और पाण्डु मथुरा नगरी बसा, वहीं पर रहने की आज्ञा दी।
पाँचों पाण्डव बल, वाहन, हाथी घोड़ों सहित हस्तिनापुर से प्रस्थित हए और दक्षिण दिशा के वेलातट पर पहच कर पाण्डु मथुरा नगरी बसाकर सुखपूर्वक रहने लगे ।२६.
२५. (क) ज्ञाताधर्मकथा अ० १६, १३२, पृ० ४८-४६ (ख) पांडवाः स्वपुरं गत्वा तत् कुन्त्या आचचक्षिरे ।
कुन्त्यपि द्वारकां गत्वा वासुदेवमभाषत । त्वया निर्वासिता कुत्र तिष्ठन्तु मम सूनवः । अस्मिन् भरतवर्षाद्ध न सा भूर्भवतो न या ।।
-त्रिषष्टि० ८।१०।८६.६२ २६. पांडव चरित्र सर्ग १७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org