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द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरण
पाण्डवों का निर्वासन :
द्रौपदी के उद्धार के पश्चात् श्रीकृष्ण और पाँचों पाण्डव रथों पर आरूढ़ हो लवण समुद्र के मध्य में होते हुए जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की ओर आगे बढ़े। जब गंगामहानदी के समीप पहुंचे तब श्रीकृष्ण ने पाण्डवों से कहा- तुम लोग गंगानदी को पार करो, मैं इस बीच लवरण समुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ । पाँचों पाण्डवों ने एक लघु नौका की अन्वेषणा की और उसमें बैठ महानदी गंगा को पार किया। गंगा से उतरने के बाद उन्होंने आपस में वार्तालाप किया कि कृष्ण वासुदेव भुजा से गंगा महानदी को पार करने में समर्थ हैं या नहीं, यह देखना चाहिए। ऐसा सोचकर उन्होंने नौका को छिपा दिया और श्रीकृष्ण वासुदेव की राह देखने लगे । २०
कृष्ण सुस्थित देव से मिलकर गंगा महानदी के तट पर पहुँचे । वहाँ उन्होंने नौका तलाश की, पर नौका दिखलाई नहीं दी । श्रीकृष्ण ने अपने एक हाथ में घोड़े और सारथी सहित रथ को ग्रहण किया और दूसरे हाथ से गंगा महानदी को पार करने लगे । जब वे गंगा महानदी के मध्यभाग में पहुँचे तो थक गये । उन्हें थका हुआ देखकर गंगा देवी ने जल का स्थल (स्ताद्य) बना दिया | श्रीकृष्ण ने वहाँ एक मुहूर्त विश्राम किया, फिर गंगा महानदी को भुजा से पारकर जहां पाण्डव थे वहाँ पहुँचे । श्रीकृष्ण ने कहा- देवानुप्रियो ! तुम बड़े बलवान् हो, क्योंकि तुमने गंगा महानदी को भुजाओं से पार किया । जान पड़ता है कि तुमने जानबूझ कर ही राजा पद्मनाभ को पराजित नहीं किया था । २१
२०. ( क ) द्रक्ष्यामोऽद्य बलं विष्णोनौरत्र व विधार्यताम् । विना नावं कथं गंगाश्रोतोऽसावुत्तरिष्यति ।। एवं ते कृतसंकेता निलीयास्थुर्नदीतटे । इतश्च कृतकृत्यः सन् कृष्णोऽप्यागात्स रिद्धराम् ॥
(ख) ज्ञातासूत्र अ० १६
२१. (क) त्रिषष्टि० ८१०८१-८४ (ख) पाण्डव चरित्र सर्ग ९७
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- त्रिषष्टि० ८।१०।७७-८०
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