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द्रौपदी का स्वयंवर और अपहरण
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राजा पद्मनाभ ने पाँचों पाण्डवों पर शस्त्रों का प्रहार किया। उनके अहंकार को नष्ट कर दिया। ध्वजादि चिह्नों को नीचे गिरा दिया। और इधर-उधर भगा दिया।
पाँचों पाण्डव शत्र की सैन्य-शक्ति को सहन करने में असमर्थ हो गये। वे सभी भागकर कृष्ण वासुदेव के पास पहुंचे। ____ कृष्ण वासुदेव ने पूछा-पाण्डवो ! तुमने पद्मनाभ को क्या कहकर युद्ध प्रारंभ किया था? पाण्डवों ने कहा- स्वामी ! हमने कहा- या तो हम ही रहेंगे या राजा पद्मनाभ ?' ___ कृष्ण-देवानुप्रियो ! तुम यह कहकर युद्ध प्रारंभ करते कि-'हम राजा हैं, पद्मनाभ नहीं तो तुम्हारी ऐसी गति नहीं होती। अच्छा लो, 'मैं राजा हूँ, पद्मनाभ नहीं' ऐसी प्रतिज्ञा कर मैं युद्ध करता हूँ। मेरी विजय निश्चित है । तुम लोग दूर रहकर देखो ।१४
उसके बाद कृष्ण वासूदेव रथ पर आरूढ़ होकर राजा पद्मनाभ के सामने गये । स्वयं के सैन्य को आनन्दित करने वाले और शत्र की सेना को क्षब्ध करने वाले पाँचजन्य शंख को ग्रहण कर उसे मुखवायु से पूरित किया । शंख के शब्द से राजा पद्मनाभ के सैन्य का तृतीय भाग हत हो गया।
उसके पश्चात् श्रीकृष्ण ने सारंग नामक धनुष को हाथ में लिया, उस पर प्रत्यंचा चढ़ा भयंकर टंकार किया। धनुष के शब्द से शत्र - सैन्य का दूसरा एक तिहाई भाग हत, मथित हो भाग निकला।
सेना का मात्र एक तिहाई भाग शेष रह जाने से राजा पद्मनाभ सामर्थ्य, बल, वीर्य, पराक्रम, पुरुषार्थ से रहित हो गया । अपने को असमर्थ जानकर वह अत्यन्त शीघ्रता से अमरकंका राजधानी की और बढ़ा। नगर में प्रवेश कर उसने दरवाजे बंद करवा दिये।
कृष्ण वासुदेव पीछा करते हुए अमरकंका आये । रथ को खड़ा किया। रथ से नीचे उतरकर वैक्रियलब्धि से एक विशाल नरसिंह के रूप को विकुर्वित किया और वे महाशब्द के साथ पृथ्वीपर पद
१४. राजाहमेव नो पद्म इत्युदित्वा जनार्दनः । युधि चचाल दध्मौ च पांचजन्यं महास्वनम् ॥
-त्रिषष्टि० ८।१०।५१
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