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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण बड़े सभी मार्गों में उच्च स्वर से यह उद्घोषणा करो-युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजभवन में आकाशतल पर सुखपूर्वक सो रहे थे। उनके पास से किसी ने सोई हई द्रोपदी का अपहरण किया है । जो द्रोपदी का पता लगा देगा उसे श्रीकृष्ण वासुदेव विपुल अर्थदान देंगे।
कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया पर द्रौपदी का कहीं पर भी पता न लगा। द्रौपदी का उद्धार : ___ एक दिन श्रीकृष्ण वासुदेव अपनी रानियों के साथ बैठे हुए थे। इतने में कच्छुल नारद वहाँ पर आये । श्रीकृष्ण ने उनसे प्रश्न किया --ऋषिवर ! आप अनेक ग्रामों, नगरों यावत् घरों में जाते हैं, क्या आपने कहीं द्रौपदी की भी बात सुनी है ? ___ नारद ने उत्तर देते हुए कहा- मैं एक बार धातकीखण्ड की पूर्व दिशा में दक्षिणाद्धं भरत क्षेत्र में अमरकंका राजधानी गया था। वहाँ पर राजा पद्मनाभ के राजभवन में द्रौपदी जैसी एक नारी देखी है।
कृष्ण ने मजाक करते हुए कहा- "लगता है यह आप देवानुप्रिय की ही करतूत है ?" नारद सुनी-अनसुनी कर चल दिये। __कृष्ण ने दूत को बुलाकर कहा-तुम हस्तिनापुर जाकर पाण्डुराजा से यह प्रार्थना करो कि द्रौपदी का पता लग गया है। पाँचों पाण्डव चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत हो पूर्व दिशा के वैतालिक समुद्र के किनारे मेरी प्रतीक्षा करते हए उपस्थित रहें।
तत्पश्चात् श्री कृष्ण ने सन्नाहिका भेरी बजवायी। उसका शब्द श्रवण करते ही समुद्रविजय आदि दश दशाह, यावत् छप्पन हजार बलवान योद्धागण तैयार हुए। वे अपने-अपने आयुधों को लेकर कोई हाथी पर, कोई घोड़े पर, सवार हो सुभटों के साथ श्री कृष्ण की सुधर्मा सभा में कृष्ण वासुदेव के निकट आये । जय-विजय के शब्दों से उनकी स्तुति की। __ श्रीकृष्ण वासुदेव श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ हुए। कोरंट फूलों की माला वाला छत्र धारण किया । उन पर श्वेत चँवर डुलाया जाने लगा। इस प्रकार घोड़े, हाथियों, भटों, सुभटों के परिवार से सुपरिवृत हो श्रीकृष्ण द्वारवती नगरी के मध्य में होकर जहाँ पूर्व दिशा का
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