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भगवान अरिष्टनेमि और श्रीकृष्ण
उस समय श्री कृष्ण मथुरा में ही थे, पर वह गदा उनकी कुछ भी हानि न कर सकी । २८
जरासंध के हंस और डिम्भक नामक सेनापति बड़े बहादुर थे, अतः यादवों ने उनके साथ युद्ध करना अच्छा नहीं समझा | २१ जब वे यमुना में डूबकर मर गये तब श्रीकृष्ण ने विचारा कि जरासंध को युद्ध में मारना कठिन ही नहीं, कठिनतर है अतः उसे द्वन्द्व युद्ध में ही हराया व मारा जाय । इसलिए श्रीकृष्ण भीमसेन व अर्जुन के साथ ब्राह्मणों के वेश में मगध की ओर चल दिये । वे जरासंध के वहाँ पर पहुँचे । उन्हें देखते ही जरासंध आसन से उठकर खड़ा हुआ । उनका आदर सत्कार कर कुशल प्रश्न पूछे । भीमसेन और अर्जुन मौन रहे । बुद्धिमान् श्रीकृष्ण ने कहा- राजन् ! ये इस समय मौनी हैं इसीलिए नहीं बोलेंगे । आधी रात्रि के पश्चात् ये आपसे बातचीत करेंगे ।३१
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तीनों वीरों को यज्ञशाला में ठहराकर जरासंध अपने रनवास में चला गया । अर्धरात्रि के व्यतीत हो जाने पर वह फिर उनके पास आया । उनके अपूर्व वेश को देखकर जरासंध को आश्चर्य हुआ । ब्रह्मचारियों की वेशभूषा से विरुद्ध तीनों की वेशभूषा को देखकर जरासंध ने कहा- हे स्नातक ब्राह्मणों ! मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि स्नातक व्रतधारी ब्राह्मण गृहस्थाश्रम में जाने से पहले न तो कभी माला पहनते हैं और न चन्दन आदि लगाते हैं । तुम अपने को ब्राह्मण बता चुके हो, पर मुझे तुम में क्षत्रियों के भाव दीख पड़ते हैं । तुम्हारे चेहरे पर क्षत्रियों का तेज साफ झलक रहा है । सत्य कहो तुम कौन हो ? ३२
श्रीकृष्ण ने अपना परिचय दिया और साथ ही भीम व अर्जुन का भी । अपने आने का प्रयोजन बतलाते हुए उन्होंने कहा – तुमने
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२८. महाभारत, सभापर्व, अ० १६, श्लोक १६-२५ २६. महाभारत, सभापर्व, अ० १६ श्लोक २७-२८ ३०. वहीं, सभापर्व, अ० २० श्लोक १-२ ३१. वहीं, सभापर्व, अ० २१ श्लोक ३०-३४ ३२. महाभारत, सभापर्व, अ० २१, श्लोक ३५-४८
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