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________________ जरासंध का युद्ध २५६ लगे । जब जरासंध के पास सभी अन्यान्य शस्त्र और अस्त्र समाप्त हो गये तब उसने अन्तिम शस्त्र के रूप में चक्र शस्त्र को हाथ लगाया। उसे आकाश में घुमाकर ज्यों ही श्रीकृष्ण पर चक्र का प्रहार किया कि एक क्षण के लिए दर्शक स्तम्भित हो गये ! किन्तु चक्र श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा देकर उन्हें बिना कष्ट दिये उनके पास अवस्थित हो गया। श्रीकृष्ण ने उसे अपने हाथ में ले लिया। उसी समय 'नौवां वासुदेव उत्पन्न हो गया है' ऐसी उद्घोषणा हुई ।१७ श्री कृष्ण ने दया लाकर जरासंध से कहा-अरे मूर्ख ! क्या यह भी मेरी माया है। अभी भी तू जीवित घर चला जा, मेरी आज्ञा का पालन कर और व्यर्थ के श्रम को छोड़कर अपनी सम्पत्ति भोग । वृद्ध अवस्था आने पर भी जीवित रह । __ जरासंध ने कहा--कृष्ण ! यह चक्र मेरे सामने कुछ भी नहीं है। मैंने इसके साथ अनेक बार क्रीड़ा की है, यह तो लघू पौधे की तरह उखाड़ कर फेंका जा सकता है। तू चाहे तो चक्र को फेंक सकता है। फिर श्री कृष्ण ने वह चक्र छोड़ा। पुण्य की प्रबलता से दूसरों के शस्त्र भी स्वयं के बन जाते हैं । चक्र ने जाकर जरासंध का मस्तिष्क छेदन कर दिया। जरासंध मरकर चतुर्थ नरक में गया । श्री कृष्ण का सर्वत्र जय जयकार होने लगा।५८ वासुदेव श्रीकृष्ण : जरासंध की मृत्यू होगई, यह जानकर श्रीकृष्ण के जो शत्र राजा थे, जिनका निरोध अरिष्टनेमि ने कर रखा था, उनको अरिष्टनेमि १७. (क) जाते सर्वास्त्रवैफल्ये वैलक्ष्यामर्षपूरितः । चक्र सस्मार दुर्वारमन्यास्त्र मगधेश्वरः।। ."नवमो वासुदेवोऽयमुत्पन्न इति घोषिणः । गंधांबुकुसुमवृष्टि कृष्णे व्योम्नोऽमुचत्सुराः ।। -त्रिषष्टि ८ । ७ । ४४६-४५७ (ख) हरिवंश पुराण ५२ । ६७ । ६०१ । १८. (क) त्रिषष्टि ८ । ७ । ४५३-४५७ (ख) हरिवंश पुराण ५२ । ८३-८४, पृ० ६०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003179
Book TitleBhagwan Arishtanemi aur Karmayogi Shreekrushna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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